SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३८ ) सहाय मात्र, अहेतुवत् आदि शब्दो द्वारा सम्बोधित किया जाता है । (६) किसी भी समय उपादान मे निमित्त कुछ भी नही कर सकता है, निमित्त उपादान मे कुछ करता है ऐसी बुद्धि निगोद का कारण है । (७) उपादान के अनुकूल ही उचित निमित्तकारण होता है । ( ८ ) निमित्त कारण आये तभी उपादान मे कार्य होता है ऐसी मान्यता झूठी है । (६) उपादान - निमित्त दोनो एक साथ अपने-अपने कारण से होते हैं । (१०) कार्य उपादान से ही होता है निमित्त की अपेक्षा कथन होता है ऐसा पात्र जीव जानता है । 1 प्रश्न २७ - अज्ञानी क्या देखते हैं ? उत्तर - विशेष को ही देखते है सामान्य को नही देखते हैं । प्रश्न २८ --- मात्र विशेष को देखने से सामान्य को ना देखने से क्या होता है ? उत्तर - आस्रव वध करता हुआ चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद मे चला जाता है । प्रश्न २६ -- ज्ञानी क्या देखते हैं ? उत्तर - सामान्य को देखते है । प्रश्न ३० - सामान्य को देखने से क्या होता है ? उत्तर --सवर - निर्जरा की प्राप्ति करके क्रम से मोक्ष की प्राप्ति करता है । प्रश्न ३१ - निमित्त क्या बताता है ? उत्तर - निमित्त उपादान की प्रसिद्धि करता है । जैसे - पानी का लोटा यह बतलाता है कि लोटा तो पीतल का है पानी का नही होता; उसी प्रकार निमित्त कहता है जैसा में कहता हूँ उसे झूठा मानना और उपादान जो कहता है उसे सत्य मानना, क्योंकि मैं किसी को किसी मे मिलाकर कथन करता हूँ मेरे श्रद्धान से मिध्यात्व होगा और उपादान किसी को किसी मे मिलाकर निस्पण नही करता, उसके श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है । ओर जहाँ मेरी अपेक्षा ( निमित्त की
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy