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________________ ( १४२ ) प्र० ३८. मैं सबको कैसे जान सकता हूं ऐसी मान्यता वाला क्या भूलता है ? प्रमेयत्व गुरण को भूलता है । उ० प्र० ३६. मैं शरीर का बाल बच्चोंग कर सकता हूँ ऐसी मान्यता वाला क्या भूलता है ? प्रमेयत्व गुण को भूलना क्योंकि शरीर के साथ, बाल बच्चों के साथ संबन्ध है ज्ञयपने का, माना कर्तापने का | उ० प्र० ४०. मैं पर का उ० भोगता हूँ ऐसी मान्यता वाला कौन है ? उ० (१) जिनमत से बहार विक्रिया दी है। (२) पर के साथ ज्ञेय-ज्ञापक संबंध है माना कर्ता और भोगता का तो उसने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना । प्र० ४१. श्रात्मा का और द्रव्य कर्मों का कर्ता-कम संबंध है ना ? विल्कुल नहीं । मात्र ज्ञ ेय-ज्ञायक संबंध है । अथवा निमित्तनैमित्तिक संबंध है जो दोनों की स्वतंत्रता का ज्ञान कराता है । प्र० ४२. शास्त्रों में कथन प्राता है कि ( १ ) कर्म जीव को चक्कर कटाता है, (२) ज्ञानावर्णी के प्रभाव से केवलज्ञान होता है ( ३ ) दर्शन मोहनीय के सद्भाव से मिथ्यात्व रहता है और प्रभाव से क्षायिक सम्यक्त्व होता है क्या यह कथन झूठा है ? उ० यह व्यवहार कथन है इसका अर्थ ऐसा है नहीं, निमित्तादि की अपेक्षा कथन किया है ऐसा जानना चाहिए |
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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