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________________ ( १४३ ) प्र० ४३. लड़का प्राज्ञा न माने, स्त्री हमारे मुताविक न चले तो क्या क्रोध नहीं आवेगा? उ० लड़का प्राज्ञा न माने, स्त्री हमारे मुताबिक न चले, वह हमारे ज्ञान का ज्ञेय है ऐसा माने तो क्रोध नहीं ग्रावेगा, तब प्रमेयत्व गुण को माना और उनके कारण क्रोध माना तो प्रमेयत्व गुण को नहीं माना। प्र० ४४. प्रमेयत्व गुण का मर्म समझने के लिये किसका आदर्श रक्खें ? उ० (१) द्धि भगवानों का । मन्दिर जी में अरहंत भगवान को अपना आदर्श माने तो प्रमेयत्व गुण का मर्म समझ में आवे। जैसे मन्दिर में कोई चोरी करे, किसी का बुरा विचारे तो भगवान अरहंत कहते हैं जानों और देखो क्योंकि वह तुम्हारे ज्ञान का ज्ञय है । साक्षात समोशरण में अनेक जीव होते हैं विरोध भी होता है तो क्या भगवान नहीं जानते ? जानते तो हैं उन्हें क्रोधादि क्यों नहीं पाता ? उन्हें वह जय जानते हैं । हम भी सबको ज्ञेय माने तो भगवान की प्राज्ञा मानी और प्रमेयत्व गुण को माना। प्र० ४५. देव गुरू शास्त्र क्या बताते हैं ? उ० तेरा संसार के पदार्थों के साथ मात्र ज्ञ य-ज्ञायक संबंध हैं कर्ता-कर्म , भोक्ता-भोग्य संबंध नहीं है: सकल ज्ञय ज्ञायक तदपि, निजनंद रस लीन । सो जिनेन्द्र जयवन्त नित,अरि रज रहस विहीन । प्र० ४६. संसार में जीव दुःखो क्यों है ? उ० भगवान की आज्ञा न मानने से ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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