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________________ ( १४० ) के लिये बाहर निकला। दरबार पहले कभी महल से बाहर नहीं निकला था, इसलिये उसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं था। वह बछेरे खरीदने एक गांव से ढमरे गांव में जा रहा था। बीच में उसे कुछ ठग मिले। बातचीत में उन ठगों ने जान लिया कि दरवार बिल्कुल अनुभवहीन है पौर बछेरे खरीदने बहार निकला है । उन ठगों ने दरबार को ठगने का निश्चय किया और दो काशीफल लेकर एक पेड़ पर टांग दिये । उसी पेड़ के पास वाली झड़ो में दो खरगोश के बच्चे छिपे बैठे थे। उन ठगों ने दरवार से कहा हमारे पास बछेरों के दो मुन्दर अण्डे हैं इनमें से दो सुन्दर बछेरे मिलने । दरबार से सौदा तय करके दो हजार रुपये ले लिये । फिर उस पेड़ पर छिपाकर रखे हुए दोनों काशीफलों को नीचे गिरा दिया। नीचे गिरते हो वे फट गये और जोर से धड़ाका हुआ। उस धड़ाके का आवाज सुनकर वे खरगोश के बच्चे झाड़ी में से निकल कर भागे । तब वे ठग ताली बजाकर हंसे और बोले-महाराज ! महार!ज ! अन्डे तो फूट गये । वे तुम्हारे दोनों बछेरे भागे जा रहे हैं। पकड़ो, पकड़ो। दरबार उन्हें सचमुच बछेरे जानकर उन्हें पकड़ने दौड़ा। परन्तु वे खरगोश किसी झाड़ी में छिप गये। हाथ न आए, दरबार मन मास र घर आ गया । घर आकर अन्त:पुर के लोगों ने पूछा कि महाराज, बछेरों का क्या हुप्रा । तब दरबारने अन्डे खरीदने की समस्त वार्ता कह सुनाई और कहने लगा कि इतने सुन्दर बछेरे निकले कि निकलते हो दौड़ पड़े : अन्त:पुर के लोगों ने कहा कि महाराज आप मूर्ख हो गये हैं-कहीं बछेरों के अन्डे भी होते हैं परन्तु दरबार ने कहा अरे! मैंने अपनी प्रांखों से देखें हैं । परन्तु कोई पूछे, परे ! जब बछेरे के अन्डे होते ही नहीं तो तुमने देखे कहाँ से हैं; उसी
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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