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________________ ( १ : 2 ) प्र ० ३२. जिसमें ज्ञान गुण हो उसमें प्रमेयत्व गुण होगा या नहीं ? उ० अवश्य ही होगा । प्र० ३३. ज्ञानी मुखी क्यों है ? ज्ञानी दुःखी क्यों है ? 30 ज्ञानी संसार के पदार्थों के साथ ज्ञेय-ज्ञायकता है इसलिये सुखी है और ज्ञानी पर पदार्थों के साथ कर्ता कर्य, भोक्ता भोग्य संबंध मानता है इसलिये दुःखी है । प्र० ३४. सातवें तक में सम्यगृष्टि जीव सुखी है उन्होंने शेय-नायक संबन्ध माना ? हां। उन्होंने ज्ञेय - ज्ञायक संबन्ध माना है तभी तो बागी बने । उ० प्र० ३५. हमको तो पदार्थों के साथ कर्ता कर्न, भोक्ता-पीय संव ही जान पड़ता है ज्ञयज्ञायक नहीं, इसका क्या कारण है ? (१) अज्ञानी को पीलिया रोग हो गया इसलिये जो उल्टा मालूम पड़ता है । (२) जैसे रेल में पेड़ चलते दिखते हैं, उसी प्रकार प्रज्ञादी को पर द्रव्यों के साथ कर्ता-कर्म, भोक्ता भोग्य संबंध दिखता है । वास्तव में रेल चलती है पेड़ नहीं चलते उसी प्रकार वास्तव में ज्ञय-ज्ञायक संबन्ध है । (३) "बछेरे के ग्रण्डे के ससान ग्रात्मा ने किया ऐसा मानता है । बछेरे के ग्रण्डे का दृष्टान्त निम्न प्रकार से है: एक बार एक दरवार दो सुन्दर घोड़े के बछेरों को खरीदने 30
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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