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________________ HEART - --heird tactARIDABALI इसी भांति पहले प्रग प्राचारांग में भगवान के साधक जीवन का विशद विवेचन है। अभी तक इन अंगों की खोज बीन कर महावीर के जीवन सूत्रों से कोई प्रामाणिक ग्रंथ नहीं लिखा गया, कसे आश्चर्य की बात है। अब एक ग्रन्थ विजयेन्द्रसूरि का 'तीर्थकर महावीर' यशोधर्म मन्दिर, बम्बई से प्रकाशित हुमा है। यह ग्रंथ का केवल प्रथम भाग है । अभी उसके अन्य भाग भी प्रकाशित होंगे। विद्वान लेखक ने साधना की है और उसका यह परिणाम है। इसके पूर्व भी अनेक प्रयास हुए हैं, किन्तु वे नगण्य ही हैं । जीवन चरित्र महावीर के समय को लेकर कोई विवाद नहीं है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही ग्रन्थों के अनुसार महावीर का जन्म ईस्वी पर्व ५९८ में और निर्वाण ईस्वी पूर्व ५२७ में हुआ था। निर्वाण को लेकर कल्पसूत्र और उत्तरपुराण में यत्किचित् अन्तर है । कल्पसूत्र के अनुसार महावीर पूर्ण ७२ वर्ष जीवित रहे, जबकि उत्तरपुराण में उन्हें ७१ वर्ष और कुछ मास का लिखा है। इसका प्रामाणिक विवेचन इस लेख का विषय नहीं है । अन्य विद्वान उस पर प्रकाश डालने का प्रयास करेगे। इस विषय में धवलाटीका, तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार, तपागच्छ और नन्दीसंघ की पट्टावली आदि दिगम्बर ग्रन्थों को भी पढ़ना होगा । इस विषय में बौद्ध ग्रन्थों का सहाय्य महत्वपूर्ण होगा। प्रस्तुत लेख के लिये तो इतना पर्याप्त है कि महावीर का जन्म ५६८ ई० पूर्व और निर्वाण ५२७ ई० पूर्व हुआ। __ महावीर का जीवन चरित्र सभी ग्रंथों में समान रूप से वरिणत है । कहीं-कहीं थोड़ा बहुत भेद पाया जाता है, जो नगण्य-सा ही है । महावीर का जन्म क्षत्रिय कुण्ड ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। त्रिशला वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थी। चेटक की ही दूसरी पुत्री चेलना थी, जिसका परिणय मगध के सम्राट बिम्बसार के साथ हुआ था । क्षत्रिय कुण्ड ग्राम वैशाली का ही एक भाग था। महावीर को 'वैसालिय' कहा जाता है । वे क्षात्रकुल में जन्मे थे। उन्हें 'नातपुत्त' कहते हैं। उनका जन्म 'निर्ग्रन्थ' परम्परा में हुआ था। उनके माता-पिता २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के धर्म को मानते थे। वे प्रति दिन एक पार्श्व चैत्य में बंदना के लिये भी जाया करते थे। पहले जैन साधुओं को निम्रन्थ ही कहा जाता था। महावीर के लिये 'निगण्ठ' शब्द १. 'अरहा नायपुत्त भगव बेसालिए वियाहिए सि वेमि' सूत्रकृताङ्ग सूत्र, २/३ । NATOPATI ANJANA 4 55 55 55 55 55 55 ३ फाऊ55555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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