SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माRANA पन खेल में खो दिया । जवानी मस्ती में बिता दी । इतने राग-रंगों में मस्त रहा कि वृद्धावस्था में शक्ति बिलकुल क्षीण हो गई । यदि तूने यह सोचा था कि वृद्ध होने पर जप-तप कर लूगा, तो वह तेरा अनुमान प्रसत्य की छाया ही थी । तू संसार के उन पदार्थों में तल्लीन है, जिनका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है। वे सेमल के फूल की तरह झूठे हैं। प्रातः के प्रोस कणों की भाँति शीघ्र ही विलुप्त हो जायेंगे।" वे पंक्तियाँ हैं दिन दिन आव घटै है रे लाल, ज्यौं अंजली को नीर मन माहिं ला रे । कीयो जाय ठोकर लै रे लाल, थिरता नहीं संसार मन माहिं ला रे ।। बालपणौं खोयो ख्याल मैं रे लाल, ज्वाणपणों उनमान मन मांहि ला रे । वद्धपणो सकति घटी रे लाल, करि करि नाना रंगि मन माहिं ला रे। समकित स्यौं परच्यौ करौ रे लाल, मिथ्या संगि निवारि मन माहिं ला रे । ज्यौं सुष पावै अति घणा रे लाल, मनोहर कहैय विचारि मन माहि ला रे ।' भारतीय मन सदैव भक्ति-धारा से सिञ्चित होता रहा। उसके जन्म-जन्म के संस्करण भक्ति के साँचे में ढले हैं। हो सकता है कि उसकी विधायें विकृत दिशा की ओर मुड़ गई हों, किन्तु मूल में विराजी भक्ति किंचिन्मात्र भी इधरसे-उधर नहीं हुई, यह सच है । एक विलायत से लौटा भारतीय भी मन से भक्त होता है। विज्ञान की प्रयोगशालाओं में डूबा वैज्ञानिक भगवान् को निरस्त नहीं कर पाता । आधुनिकता के पैरोकार परमपिता का नाम लेते देखे गये हैं। वैदिक और श्रमण दोनों परम्परायें भगवान् के नाम में अमित बल स्वीकार करती हैं। सच्चे हृदय से लिया गया नाम कभी निष्फल नहीं जाता। उससे विपत्तियां दूर हो जाती हैं । बेचैन, व्याकुल और तड़फता मन शांति का अनुभव करता है, यह केवल अतिशयोक्ति नहीं है कि गणिका, गज और अजामिल नाम लेने मात्र से १. देखिए, 'सुगुरुसीष', पं० मनोहरदास रचित, हस्तलिखित गुटका नं० ५४, वेष्टन नं० २७२, जैन मन्दिर, बड़ौत (मेरठ)। RAHA RASTRATIESETTRIES E BHASE A भाजप VOI 559
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy