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________________ ग्रीष्म के प्रखर सूर्य से संतप्त हुए जीव को जल प्रोर छाया में शान्ति मिलती है, वैसे ही संसार के दुःखों से बेचैन प्राणी भगवान् के चरण कमलों में शान्ति पाता है ।" मुनि शोभन शाश्वत शान्ति चाहते हैं । उनका विश्वास है कि भगवान् की वाणी का वरण करने मात्र से वह उपलब्ध हो सकती है । श्राचार्य सोमदेव शिव-सुख देने वाली शान्ति चाहते हैं । वही भव दुःख रूपी मग्नि पर घनामृत की वर्षा कर सकती है । वह शान्ति भगवान् शान्तिनाथ प्रदान कर सकते हैं । "भव दुःखानलाशान्तिर्धर्मामृत वर्ष जनित जनशान्तिः । शिवशर्मासवशान्तिः शान्तिकरः स्ताज्जिनः शान्तिः ॥ १ जैन ग्रन्थों के अन्तिम मंगलाचरण प्रायः शान्ति की याचना में ही समाप्त होते हैं । शान्ति भी केवल अपने लिए नहीं, संघ, प्राचार्य, साधु, धार्मिक जन और राष्ट्र के लिए भी । आचार्य पूज्यपाद का "संपूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्र सामान्य तपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्ति भगवान् जिनेन्द्रः । इसी का द्योतक है। पं० श्री मेघावी के धर्मसंग्रह श्रावकाचार का १. न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवन्पादद्वयं प्रजा, हेतुस्तत्र विचित्र दुख निचय. ससारधोरार्णवः । प्रत्यन्त स्फुरदुप्ररश्मिनिकरव्याकीर्ण भूमडलो, ग्रैष्म. कारयतीन्दु पादसलिलच्छायानुराग रविः || आचार्य पूज्यपाद, संस्कृतशान्तिभक्ति, पहला श्लोक, पृ० १७४ । २. शान्ति वस्वनुता न्मियोऽनुगमनाद्यन्नं गमनाद्यैनं ये, रक्षोमं जन हेऽतुला जितमदोदी गगजालं कृतम् । तत्पूज्य जगतां जिनैः प्रवचनं द्रप्यत्कुवाद्याबली, रक्षोमं जन हेतुलांछितमदो दीपांग जालं कृतन् ॥ मुनिशोभन, चतुविशतिजिनस्तुतिः, काव्यमाला, सप्तमगुच्छक, निर्णयसागर प्रस, बम्बई, ३रा श्लोक, पृ० १३३ । ' ३. K. K. Handiqui, yasastilak and Indian culture, Sholapur, 1949. P. 311. ४. दशमक्त्यादिसंग्रह, पृ० १५१, श्लोक १४वाँ । 5555555 १७३ 55 56
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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