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________________ 4 SaamanARAM . योगों पक्ष' गुलाब की सुगन्धि मोर सुन्दरता की भांति प्रभावकारी हैं। रस मध्यकालीन हिन्दी साहित्य में मात्मचरितों की रचना अल्पावपिझल्प हई, नहीं के बराबर । किन्तु, एक ऐसा प्रात्मचरित है, जिसकी सत्ता और सामर्थ्य प्राज के समीक्षक विद्वान भी स्वीकार करते हैं। उसके रचयिता कवि बनारसीदास थे। नाम है मर्धकथानक । प्रात्मचरितों के अधिकारी शाता श्री बनारसीदास चतुर्वेदी ने 'अधकथानक' को प्रादर्श प्रात्मचरित माना है। इसका अर्थ है कि प्रात्मकथा की कसौटी पर वह खरा है । उन्होंने लिखा है, "अपने को तटस्थ रख कर अपने सत्कर्मों तथा दुष्कर्मों पर दृष्टि डालना, उनको विवेक की तराज पर बावन तोले पाव रत्ती तौलना, सचमुच एक महान कलापूर्ण कार्य है। अर्धकथानक में यह गुण है।"'डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने भी इसका 'अर्धकथा' नाम से सम्पादन किया था और 'साहित्य परिषद्', प्रयागविश्वविद्यालय से उसका प्रकाशन भी हुभा था। उनकी मान्यता है, "कभी-कभी यह देखा जाता है कि प्रात्मकथा लिखने वाले अपने चरित्र के कालिमा पूर्ण अंशों पर एक प्रावरण-सा डाल देते हैं यदि उन्हें सर्वथा बहिष्कृत नहीं करते-किन्तु यह दोष प्रस्तुत लेखक में बिलकुल नहीं है ।२" पं० नाथूराम प्रेमी का कथन है, "इसमें कवि ने अपने गुणों के साथ-साथ दोषों का भी उद्घाटन किया है, और सर्वत्र ही सचाई से काम लिया है । 3" इस सब से सिद्ध है कि 'अर्धकथानक' मध्यकाल की एक सशक्त कृति थी । 'खड़ी बोली की पुट' वाला यह आत्मचरित अत्यधिक प्रासान और रुचिकारक है । न जाने क्यों कॉलिजों के पाठ्यक्रम में, अभी तक, इसको स्थान नहीं मिला है ? मध्यकालीन हिन्दी मुक्तक पद काव्य क्षमतावान है। विविधरागरागिनियों से समन्वित, वाद्य यन्त्रों पर खरा और श्रुतमधुर । भाव की गहराइयों को लिये हुए । सूरदास के पद काव्य से किसी प्रकार कम नहीं। 'भगवद्भक्ति' के क्षेत्र में सूरदास वात्सल्यरस के एकमात्र कवि माने जाते हैं । तुलसी ने भी बालक राम पर लिखा, किन्तु वह महाकाव्य के कथानक के १. 'हिन्दी का प्रथम प्रात्मचरित', बनारसीदास चतुर्वेदी लिखित, अनेकांत, वर्ष ६, किरण १, पृ० २१ । २. अर्धकथा, डॉ. माताप्रसाद गुप्त सम्पादित, प्रयाग, भूमिका, पृ० १४। । ३. पर्षकथानक, भूमिका, बम्बई, पृ० २२। PME.C AMUN THAN
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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