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________________ CARE P UR HALIRITY लिखा है-"पत्नी करतूति है और पिय कर्ता, पत्नी सुख-सोंव है और पिय सुखसागर, पत्नी सुख-सींव है और पिय सुख-सागर, पत्नी शिव-नींव है और पिय . शिव-मन्दिर, पत्नी सरस्वती है और पिय ब्रह्मा, पत्नी कमला है और पिय माधव, पत्नी भवानी है और पति शंकर, पत्नी जिनवारणी है और पति जिनेन्द्र ।"१ बहुत दिन उपरान्त पति घर पा रहा है, तो सुमति ललक कर कहती है-“हे सखि ! देखो, आज चेतन पर पा रहा है । वह अनादिकाल तक दूसरों के वश में होकर घुमता फिरा, अब उसने हमारी सुध ली है।"२ पति को देखते ही पत्नी के अन्दर से परायेपन का भाव दूर हो जाता है । द्वैध हट जाता है और अद्वैत उत्पन्न होता है। सुमति चेतन से कहती है-“हे प्यारे चेतन ! तेरी ओर देखते ही परायेपन की गगरी फूट गई, दुविधा का अचल हट गया और समूची लज्जा पलायन कर गई।" इसी प्रेम के अन्तर्गत प्राध्यामिक विवाह और प्राध्यात्मिक होलियाँ भी पाती हैं । ये रचनाएँ जैन कवियों की मौलिक देन हैं । हिन्दी के किसी भी क्षेत्र में इस प्रकार की रचनाओं का उल्लेख नहीं है। प्राचार्य जिनप्रभ सूरि का अंतरंग--विवाह, अजयराज पाटणी का शिवरमरणी-विवाह, कुमुदचन्द का ऋषभ-विवाहला, श्रावक ऋषभदास का प्रादीश्वर - विवाहला, विनयचन्द्र और साधुकोत्ति की 'चूनड़ी' ऐसी ही कृतियाँ हैं । कवि बनारसीदास, द्यानतराय और भूधरदास के प्राध्यात्मिक फाग अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। जैन १. पिय मो करता मैं करतूति पिय जानी मैं ज्ञान विभूति । पिय मुखसागर में सुख सीव पिय शिवमदिर मै शिवनीव ।। पिय ब्रह्मा मै सरस्वनि नाम पिय माधव मो कमला नाम । पिय शकर मैं देवि भवानि पिय जिनवर में केवल बानि ।। -बनारसी विलास, जयपुर, १९५४ ई०, अध्यात्मगीत, पृ० १६१ । २. देखो मेरी सखीये अाज चेतन घर प्राबे, काल अनादि फिर्यो परवश ही अब निज मुहि चितावै ॥१॥ -देखिए वही. परमार्थपद-पंक्ति, १४ वा पद, पृ० ११४ । ३. बालम तुहु नन चितवन गागरि गै फूटि । अचरा गौ फहराय सरम गै छूटि ।। बालम० ॥१॥ -देखिए वही, अध्यात्मपद पक्ति, पृ० २२८-२२६ । ॐफ955555फफफफक
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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