SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1000 100000004 जनपदमसूरि ( वि० सं० १२५७) ने 'थूलिभद्दफाग' की रचना की थी। भाचार्य स्थूलभद्र, भद्रबाहु स्वामी के समकालीन थे । उनका निर्वारण वी० नि० सं० २१६ में हुआ । उनका समाधिस्थल गुलजार बाग, पटना स्टेशन के सामने कमल- हृद में बना हुआ है। इस फाग की गणना उत्तम कोटि के काव्य में की जाती है। इसमें स्थूलभद्र की भक्ति से सम्बन्धित अनेक सरस पद्यों की रचना हुई है । पावस वर्णन की कतिपय पंक्तियाँ देखिए, "सीयल कोमल सुरहि बाय जिस जिम वायंते । मारग - मडफ्फर मारणरिय तिम तिम नाचते || जिम जिम जलधर मरिय मेह गयगरि मलिया । तिम तिम कामीतररणा नयरण नीरहि भल छलिया || नेमिचन्द्र भण्डारी, खरतरगच्छीय जिनेश्वरसूरि के पिता थे । उन्होंने वि० सं० १२५६ के लगभग 'जिनवल्लभसूरि गुणवर्णन' के नाम से एक स्तुति लिखी थी, जो 'जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह' में प्रकाशित हो चुकी है । यह स्तुति प्राचार्य भक्ति का निदर्शन है। इसमें ३५ पद्य हैं। एक पद्य इस भाँति है, "पणमवि सामि वीर जिरगु, गरगहर गोयम सामि । सुधरम सामिय तुलनि सररणु, जुग प्रधान सिवगामि || " महेन्द्रसूरि के शिष्य श्री धर्मसूरि (वि०सं० १२६६ ) ने 'जम्बूस्वामी चरित्र' 'स्थूलभद्ररास' और 'सुभद्रासती चतुष्पदिका' का निर्माण किया था ।' तीनों में क्रमशः ५२. ४७ और ४२ पद्य हैं । भगवान् महावीर के निर्वारण के उपरान्त केवल तीन केवली हुए, जिनमें जम्बूस्वामी अन्तिम थे । सुभद्रासती जिनेन्द्र की भक्त थी । तीनों ही रचनाएं पुरानी हिन्दी में लिखी गयी हैं । यद्यपि कुछ लेखक इन कृतियों की भाषा को गुजराती कहते हैं, किन्तु वह हिन्दी के अधिक निकट है। तीनों का एक-एक पद्य निम्न प्रकार से है, R " जिरण चउ वीसइ पथ नमेवि गुरु चरण नमेवि । जम्बू सामिहि तरणउ चरिय भविउ निसुणेवि ।। " - जम्बू स्वामी चरित्र १. तीनो की हस्तलिखित प्रतियाँ बीकानेर के बृहद ज्ञान भण्डार में मौजूद हैं । २. लायब्रेरी मिसेलेनी, त्रैमासिक पत्रिका, बड़ौदा महाराज की सेण्ट्रल लायब्रेरी का प्रकाशन, अप्रैल १९१५ के श्रंक में श्री सी. डी. दलाल का, पाटण के सुप्रसिद्ध जैन पुस्तकालयों की खोज में प्राप्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और प्राचीन गुजराती के ग्रन्थों का विवरण । 555555555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy