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________________ S Sae S ne N भाषा में लिखी गई है। इसमें राजीमती के वियोग का वर्णन है । नेमिनाथ तीर्थङ्कर थे, अतः उनसे किया गया प्रेम भगवद्विषयक ही कहलायेगा । जब नेमिनाथ ने पशुओं के करुणक्रन्दन से प्रभावित होकर तोरण-द्वार पर ही वैराग्य ले लिया, तो राजीमती विलाप कर उठी। इस काव्य में उसके वियोग का चित्र खींचा गया है। कतिपय पंक्तियाँ इस प्रकार हैं, "भरणइ सखी राजल मन रोइ, नीठुरु नेमि न अप्पणु होई । साँचउ सखि वरि गिरि मिजंति, किमइ न मिज्जइ सामलकति ॥" शालिभद्रसूरि (सन् ११८४) का 'बाहुबलिरास'' एक उत्तम कोटि का काव्य है । उसका सम्बन्ध महाराज बाहुबलि की वीरता और महत्ता से है। बाहुबलि प्रथम चक्रवर्ती थे। दोनों भाइयों में साम्राज्य को लेकर युद्ध हुआ था। भरत को पराजित करने के उपरान्त बाहुबलि ने वैराग्य ले लिया। उन्ही की भक्ति में इस काव्य की रचना हुई है । भाषा दुरूह अपभ्रंश है, कहीं देशभाषा के दर्शन नहीं होते । विक्रम की तेरहवी शताब्दी के अन्त में श्री जिनदत्तसूरि (वि०सं०१२७४) के रूप में एक सामर्थ्यवान् व्यक्तित्व का जन्म हुआ। वे विद्वान थे और कवि भी। उन्होंने 'चर्चरी', 'कालस्वरूपकुलकम्' और 'उपदेशरसायनरास' का निर्माण किया ।२ 'उपदेश रसायनरास' में सतगुरु के स्वरूप का विशद वर्णन हुआ है। ये तीनों ही काव्व अपभ्रंश भाषा में लिखे गये हैं। गुरु के सम्बन्ध में एक पद्य इस प्रकार है, "सुगुरु सुवुच्चइ सच्चइ मास इ पर पखायि - नियरु जसु नासइ । सव्वि जीव जिव अप्पउ रक्खइ मुक्ख-मग्गु पुच्छियउ जु अक्खइ ।" - - -- १. श्री मुनि जिनविजय ने 'बाहुबलिरास' पर 'भारतीय विद्या', बर्ष २, अंक १ में प्रकाश डाला है। २. लालचन्द भगवानदास गान्धी ने इनका सम्पादन कर, शोधपूर्ण संस्कृत प्रस्तावना सहित G.O. S. XXXVII में प्रकाशित किया है।
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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