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________________ मनचीन्हा लक्ष्य उपलब्ध भी न हो सकेगा। किन्तु गुरु के दीपक के साथ भी शर्त है कि वह ज्ञान का होना चाहिए । साधारण दीपक तो ६४ जला दिये जायें, तो भी अन्धकार दूर नहीं होगा । अन्धकार तो लाखों चन्द्रों के साथ होने पर भी हटेगा नहीं, जब तक उसमें ज्ञान का प्रकाश न होगा।' ज्ञान का प्रकाश ही मुख्य है-वह प्रकाश, जो प्रात्मब्रह्म तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है। इस प्रकाश का प्रदाता ही गुरु है, फिर चाहे सूर्य से, चाहे दीपक से और चाहे किसी देव से ।। कबीर के गुरु के प्रसाद से गोविन्द मिलते हैं । सुन्दरदास के गुरु भी दयालु होकर प्रात्मा को परमात्मा से मिला देते हैं। 3 दाद के मस्तक पर तो गुरुदेव ज्यों ही पार्शीवाद का हाथ रखते हैं कि उसे 'अगम-अगाध' के दर्शन हो जाते हैं। जैन कवियों ने भी गुरु के प्रसाद को महत्ता दी है। कवि कुशललाभ को भी गुरु की कृपा से ही शिव-सुख उपलब्ध हुआ है। सोलहवीं शती के कवि चतरूमल ने पचगुरुत्रों के प्रणाम करने से मुक्ति का मिलना स्वीकार किया है । इसी शती के ब्रह्मजिनदास ने आदि पुराण में गुरु के 'प्रसाद' से 'मुगति रमणी' के मिलने की बात लिखी है । पाण्डे रूपचन्द के मत से गुरु की कृपा से ही 'अविचल स्थान प्राप्त होता है । यह परम्परा विकसित और पुष्ट रूप में अपभ्रंश-युग से चली आ रही थी। जैन अपभ्रंश-काव्य में सतगुरु की जी खोलकर प्रशंसा की गई है। उनसे गुरु के प्रसाद का परम सामर्थ्य भी प्रकट हो जाता है । मुनि राम १. चौसठि दीवा जोइ करि, चौदह चदा महि । तिहि धरि किसको चानिणी जिहि घरि गोविन्द नाहि ।। -गुरुदेव को अंग, १७ वा दोहा, कबीर-साखी-साखी-सुधा पृ० १८७ । २ देखिए पाहुड़दोहा, प्रथम दोहा पृ० १ । ३. परमातम सो आत्मा जुरे रहे बहु काल । सुन्दर मेला करि दिया सद्गुरु मिले दयाल । -सुन्दरदर्शन, इलाहबाद, पृ० १७७ ४. दादू गैब माहि गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद । मस्तक मेरे कर घऱ्या देख्या अगम अगाध ।। . -दादू, गुरुदेव, को अग, पहली साखी, संत सुधासार पृ० ४४६ । ५. दिन-दिन महोत्सव प्रतिघणा, श्री संघ भगति सुहाइ । मन शुद्धि श्री गुरुसेवी यह, जिणि सेव्यइ शिव सुख पाइ ।। -जन ऐतिहासिक काव्यसंग्रह, पूज्यवाहणगीतम् ५३ वा पद, पृ० ११५ $74147454454 55 55 99996
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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