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________________ प्रसन्नता अगाध है । उसने इस उपलक्ष्य में श्रृंगार किया है। सहज स्वभाव की चूड़ियां और थिरता का कंगन पहना है, ध्यान रूपी उरबसी गहना उर पर धारण किया है, सुरत के सिन्दूर से मांग सजाई है, निरत की वेणी को प्राकर्षक ढंग से गूंथा है और भक्ति की मेंहदी रची है ।" 1 शिव - रमणी कुमारी है । कुप्रारियों के विवाह होते ही हैं । शिव- रमणी का विवाह तीर्थकर शांतिनाथ ( १६ वें तीर्थकर ) के साथ होने वाला है । अभी विवाह मण्डप में दूल्हा नहीं आ पाया है, किन्तु वधू की उत्सुकता दबती नहीं और वह अपने मनभाये के अभी तक न आने से उत्पन्न हुई बेचैनी सखी पर प्रकट कर देती है । उसका कथन है कि उसका पति सुखकन्द चन्द्र के समान है, तभी तो उसका मन उदधि श्रानन्द से आन्दोलित हो उठा है और उसके नेत्रचकोर सुख का अनुभव कर रहे हैं। यह सच है कि अभी उसे आनन्द हो रहा है, किन्तु जब पति से मिलने जायगी, तब प्रानन्द के साथ-साथ भय भी उत्पन्न होगा । पति अनजाना है, अनजाने से मिलने में भय तो है ही । कबीर की नायिका काप रही है - थरथर कम्पै बाला जीव ना जाने क्या करसी पीव । ३ जायसी की नायिका घबरा रही है - प्रनचिन्ह पिउ कांपै मन मांहां, का मै कहब गहब जौ बाहां । इसी प्रकार बनारसीदास की नवयौवना भी भड़भड़ा गई है— बालम तुहुं तन चितवन गागर फूटि, अंचरा गौ फहराय सरम गह छूटि । इस १ सहज स्वभाव चूरिया पेनी, थिरता कगन भारी । ध्यान उरबसी उर में राखी, पिय गुन माल अधारी । सुरत सिन्दूर माग रंग राती, निरते बेनी समारी उपजी ज्योत उद्योत घट त्रिभुवन, प्रारसी केवल कारी । महिदी भक्ति रंग की रांची, भाव अंजन सुखकारी ॥ - आनन्दघन पद संग्रह, २० वां पद पृ० १० | २. सहि एरी ! दिन प्राज सुहाया मुझ माया आया नही घरे । सहि एरी ! मन उदधि अनन्दा सुखकन्दा चन्दा देह धरे ।। चन्द जिवा मेरा वल्लभ सोहे, नैन चकोरहि सुक्ख करें। - बनारसीदास : शांतिजिनस्तुति, प्रथम पद्य, बनारसीविलास, पृ० १८६ | ३. कबीरदास : सबद, ६१ वां पद, संतसुधासार, दिल्ली, पृ० ८५ । ४. जायसी : पद्मावती -रत्नसेन भेंट खण्ड पद्मावत, काशी, पृ० १३२ । ५. बनारसीदास श्रध्यात्मपदपंक्ति, १० व राग-विरवा, पहला पद्य, बनारसीविलास, जयपुर, पृ० १५४ । 55555555 - 35555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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