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________________ rammartime दोषों से रहित है तथा दर्शन ज्ञान और चरित्र से युक्त है।' उसका ध्यान करने . से एक क्षण में स्वतः ही परमपद मिल जाता है । २ 'पाहुड़दोहा' में लिखा है कि योगियों को उस परमात्मा का ध्यान करना चाहिए, जो त्रैलोक्य का सार है। उन्होंने उनको मूढ़ कहा, जो जगतिलक आत्मा को छोड़कर अन्य किसी का ध्यान करते हैं। मरकतमणि को पहचानने के उपरांत कांच की क्या गणना रहती है। आत्मा की भावना से पाप एक क्षरण में नष्ट हो जाते हैं । सूर्य एक निमेष में अधकार के समूह का विनाश कर देता है । ४ उसके अनुसार जो परम निरंजन देव को नमस्कार करता है, वह परमात्मा हो जाता है। जो अशरीरी का सन्धान करता है, वही सच्चा धनुर्धारी है। महात्मा आनन्द तिलक ने लिखा हैपरमप्पद जो झावई सो सच्चउ विवहारु । अर्थात् जो परमात्मा का ध्यान करता है, वही सच्चा व्यवहार है। जहां तक अहेतुक प्रेम का सम्बन्ध है, वह भी जैन परम्परा में ही अधिक खपता है । जो वीतराग है, वह राग को पसद करेगा ? किन्तु, जैन भक्त उसकी वीतरागता पर रीझकर ही भक्ति करता है । वीतराग से राग करने वाले के हृदय में प्रतिकार-स्वरूप प्रेम पाने की आकांक्षा न रही होगी, यह सत्य है । कितु, जैन १ अप्पा मेल्लिवि णाणमउ अण्णु परायउ भाउ । सो छंडेविणु जीव तुहुं मावहि अप्प सहाउ ।। अट्ठह कम्महं बाहिरउ सयलह दोसह चत्त । दसरण पारण चरित्तमउ अप्पा भावि गिरत्त ।। -वही, ११७४, पृ० ८०, ८१ । २. अप्पा झायहि हिम्मलउ कि बहुए अमोण । जो झायतह परम पर लब्मड एक्क खणेगा । -वही, १।६७, पृ० १०१। ३ अप्पा मिल्लिवि जगतिउ मूढ य झायहि अण्णु । जि मरगउ परियाणियउ तहु कि कच्चहु गष्णु ।। ७१ ।। ४. अप्पाए वि विभावियइ णासइ पाउ खणेण । - सूरु विणासई तिमिरहरु एक्कल्लउ णिमिसेण ।। ७२ ।। ५. परमणिरजणु जो णवइ सो परमप्पउ होइ ।। ७७ ।। ६. प्रसरीरह सधाणुकिउ सो धाणुक्कु णिरुत्त ॥ १२१ ।। ७. देखिये 'पाणंदा' की हस्तलिखित प्रति, २४ वां पद्य । NPATRO Andain FACHALLERS
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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