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________________ कहीं भी नहीं है । इस प्रनन्त सुख को इन्द्र करोडों देवियों के साथ रमरण करने पर भी प्राप्त नहीं कर पाता ।" " ठीक यही बात मुनि रामसिंह ने पाहुड़दोहा मैं लिखी है - तं सुइदु वि उ लहइ देविहिं कोटि रमंतु । २ उन्होंने यह भी लिखा कि 'जिसके मन में परमात्मा का निवास हो गया, वह परमगति को पा जाता है ।' यह परमगति, परमसुख और परम आनन्द ही है। मुनि श्रानन्द तिलक ने भी - 'अप्प गिर जगु परम सिउ अप्पा परमारगंदु' लिखकर प्रात्मा को 'निरञ्जन' और 'शिव' कहते हुए 'परमानन्द' भी कहा । 3 ४ कबीरदास ने परमात्मा के मिलन को अमृत का धारासार बरसना कहा है । जिस प्रकार अमृत श्रमरत्व प्रदान करता है, उसी प्रकार मिलन की यह वर्षा जीव को परमपद देती है । इस अमृत का ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है । कबीर इसके पारखी हैं । उन्होंने इस अमृत को छककर पिया है ।" जैनकवि विनयविजय ने भी घट में स्थित सुधासरोवर का उल्लेख किया है । उसमें स्नान करने से दुःख दूर हो जाते है, परम आनन्द उपलब्ध होता है। इस सरोवर को गुरुदेव दिखाता है, किन्तु वही देख सकता है, जिसका उसमें दिल लगा है। इस सुधा स्नान और सुधा पान की महिमा कवि बनारसीदास को भी विदित थी । कवि १. ज सिव दसरिण परम सुहु पावहि झाणु करंतु । भुवरण विप्रथि गवि मेल्लिवि देउ श्ररणतु ।। ११६ ।। जं मुरिण लहइ प्रांत जग गिय अप्पा झायतु । तमुहुइ दु विउ लहइ देविहि कोडि रमंतु ॥ ११७।। २. ज सहु विसय परमुहउ यि अप्पा झायंतु । तं मुहु इदु विरणउ लहद देविहि कोडि रमतु || ३ || ३ जसु मरिण विसइ परमपउ सयलाई चित्त चवेवि । सो पर पावइ परमगइ अलइ कम्म हरोवि ।। ६६ ।। ४. प्रार--शास्त्र भण्डार, जयपुर की 'आगंदा' को हस्तलिखित प्रति, दूसरा दोहा । निपजै घंटा पड़े टकसाल । पारपू अन उतरया पार ।। - कबीर वाणी । कबीरदास डा० द्विवेदी, पृ० २६० । ५. अमृत बरिसं हीरा कबीर जुलाहा भया ६. सुधा सरोवर है या घट में, जिसमें सब दुख जाय । विनय कहे गुरुदेव दिखाये, जो लाऊ दिल ठाय || प्यारे काहे कूं ललचाय ॥ -- पदसंग्रह, बड़ौत, शास्त्र भण्डार की हस्तलिखित प्रति, पृ० १७ । 99999664K • X55555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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