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________________ F RENCE :-- Canada . T a-in- ना पाLARIA DES LA DAANAMIC देउ, जिण जिणवरि तिहुवरणु एउ।' अर्थात्, त्रिभूवन में जिनदेव दिखता है और जिनवर में यह त्रिभुवन । जिनवर में त्रिभुवन ठीक वैसे ही दिखता है, जैसे निर्मल जल में ताराओं का समूह प्रतिबिम्बित होता है। किन्तु, त्रिभुवन में जिनदेव की व्याप्ति कुछ विचार का विषय है। त्रिभुवन का अर्थ है- त्रिभुवन में रहने वालों का घट-घट । उसमें निर्गुण या निष्कल ब्रह्म रहता है । निष्कल है पवित्र और घट-घट है अपवित्र-कलुष और मेल से भरा। कुछ लोगों का कथन है कि गन्दगी से भरी जगह में वह ब्रह्म नहीं रह सकता, अतः पहले उसको तप, साधना या संयम किसी भी प्रक्रिया से शुद्ध करो, तब वह रहेगा, अन्यथा नहीं । कबीर ने निर्गुण राम की शक्ति में पूरा विश्वास किया और कहा कि इसके बसते ही कलुष स्वतः ही पलायन कर जाता है । उन्होंने स्पष्ट ही लिखाते सब तिरे राम रसवादी, कहे कबीर बूड़े बकबादी। उनकी दृष्टि में विकार, की लहरों से तरंगायित इस संसार-सागर से पार होने के लिए राम-रूपी नैया का ही सहारा है । कबीर से बहुत पहले मुनि रामसिंह ने भीतरी चित्त के मैल को दूर करने के लिए निरञ्जन को धारण करने की बात कही थी। उन्होंने यह भी लिखा कि जिसके मन में परमात्मा का निवास हो गया, वह परमगति पा लेता है। उनके कथनानुसार जिसके हृदय में भगवान् 'जिनेन्द्र' मौजूद हैं १. तिहुयरिण दीसइ देउ जिणु जिणवरि तिहुवणु एउ। जिरणवरि दीसइ सयलु जगु को विरण किज्जइ भेउ ।। -पाहुड़दोहा, ३६ वाँ दोहा, पृ० १२ । २. नारायणु जाल बिबियउ णिम्मलि दीसइ जेम । अप्पए णिम्मलि बिबियउ लोयालोउ वि तेम ।। -परमात्मप्रकाश, २११०२, पृ० १०६ । ३. रसना राम गुन रमि रस पीजं । गुन प्रतीत निरमोलिक लीजै ।। निरगुन ब्रह्म कथौ रे माई । जा सुमिरत सुधि बुधि मति पाई ।। विष तजि राम न जपसि प्रभागे । का बूड़े लालच के लागे । ते सब तिरे रामरसवादी । कहै कबीर बूड़े बकबादी ।। -कबीर-ग्रन्थावली, पद ३७५ ४. अन्भितर चित्ति वि मइलियई बाहरि काइ तवेण । चित्ति णिरंजणु को वि घरि मुच्चहि जेम मलेण ॥ -पाहुड़दोहा, ६१ वा दोहा, पृ० १८ । ५. जसु मरिण रिणवसइ धरमपउ सयलई चिंत चवेवि । सो पर पावइ परमगइ प्रठ्ठई कम्म हणे वि ।। -वही, दोहा-सं ६६ । 125.551 41555 55 55 55 55 55 55 55 55 55
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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