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________________ - ३०० ] (८) यह लेख जैसा ही है ( सिर्फ गया है ) । डीग दरवाजा मन्दिर न० ६ में है । इस का तात्पर्य ऊपर के लेख सुपुण्यचद्र के स्थान में चन्द इतना ही अंश पढ़ा ११५ उपर्युक्त, शि० क्र० बी १३८ सन् १८७८ ( ९ ) यह लेख मन्दिर नं० ९ मे है । सन् १८७३ व मे सोनागिरि पहाडी पर मन्दिर निर्माण के अधिकार के बारे में भ० शोलेन्द्रभूषण व भ० चारुचन्द्रभूषण में कुछ विवाद चला था उस का राजा भवानीसिंह द्वारा निपटारा किया गया ऐसा इस में वर्णन है । रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० क्र० बी ४१० (१०) यह लेख मन्दिर न० ७५ मे है । इस मे सं० १९३४ में भ० चारुचन्द्रभूषण तथा फलटण ग्राम के बालचन्द नानचन्द का नाम अंकित है । उपर्युक्त, शि० क्र० बी ३७९ (११) मन्दिर नं० ४ के समीप चरणपादुका के पास यह लेख है । इसमें सं० १९४५ मे मूल संघ बलात्कारगण के गोपाचल पट्ट के भ० चारुचन्द्रभूषण का नाम अंकित है । उपर्युक्त, शि० क्र० बी ३५९ अनिश्चित समय के लेख ३०७ डीग दरवाजा ( मथुरा, उत्तरप्रदेश ) प्राकृत - ब्राह्मी यह एक अर्हत् प्रतिमा का पादपीठ लेख है । अधिक विवरण प्राप्त नही है । रि० ३० ए० १९५७-५८ शि० क्र० बी ५९३
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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