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________________ - २७८] सोनागिरि रुक्मावती के पुत्र लाला वासुदेव ने बनवाया था। प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में भ० कुमारसेन व देवसेन के नाम भी अंकित है। रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० ऋ० बी० ३६८ (२) यह लेख मन्दिर नं० ४६ में है। इस मन्दिर का निर्माण मूलसंघबलात्कारगण के भ० वसुदेवकीति के उपदेश से पं० बालकृष्ण द्वारा सं० १८१२ में किया गया था। उपर्युक्त, शि० ऋ० बी ३६६ (३) यह लेख मन्दिर नं० १५ में है। दतिया के बुन्देल राजा शत्रुजीत के राज्य में इस मन्दिर , का निर्माण हुआ था। इस में तीन तिथियां दी है--सं० १८१९ में नीव खोदी गयी, सं० १८२५ में प्रतिष्ठा हुई थी तथा पूरा काम सं० १८८३ मे पूर्ण हुआ था। लेख में भ० महेन्द्रभूषण, जिनेन्द्रभूषण व आ० देवेन्द्रकीर्ति के नाम भी उल्लिखित हैं । निर्माणकार्य घोम्हानगर के शिल्पकार मटरू ने सम्पन्न किया था। उपर्युक्त, शि० क. बी ४१३ (४) यह लेख मन्दिर नं. ७६ में स्थित एक जिनमूति के पादपीठ पर है । इस में स्थापना वर्ष सं० १८२८ तथा स्थापक देवेश का नाम अंकित है। उपर्युक्त, शि० ऋ० बी ३८२ (५) यह लेख मन्दिर नं० ५० में है। बुन्देलखण्ड में दिलीपनगर (दतिया ) के राजा इन्द्रजीत के पुत्र छत्रजीत के राज्य में नोरोदा निवासी बोटेराम ने भ० देवेन्द्रभूषण के उपदेश से सं० १८३६ में एक जिनमूर्ति स्थापित की ऐसा इस मे कहा गया है। मूर्ति के शिल्पकार का नाम घासी था। उपर्युक्त, शि० ऋ० बो ३६७
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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