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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह [४२. १९ लु बिट्ट निगर मत्तरारु भा पोदिगेयल कन्तरिकेयल निगरं मत्तरा २० रु कोरविय तेकवोलदल बिट्ट निगर मत्तप्र्पोरडुअन्तु म. २१ त [२] ४ पूदोंट मत्त १ गाण १ मनेय निवेशन ५ २२ सामान्योयं धर्मसेतुर्नृपाणां काले काले पालनीयो २३ भवद्भि, सर्वानेतान् माविन पार्थिवेन्द्रान् भूयो भूयो याच२४ ते राममद्र । स्वदत्ता परदत्ता धा यो हरेत वसुंधरां प. २५ ष्टि वर्षसहस्राणि विष्टायां आयते क्रिमि ॥ चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्ल ( सोमेश्वर २ ) के अगेन महामडलेश्वर जटाचोळ भीम महाराज के अधीन महासामन्त मळेयमरस गिरिगोटेमल्ल के राज्य में माकिसेट्टि द्वारा पोन्नपाळ में निर्मित गिरिगोटेमल्ल जिनालय के लिए कुछ भूमि, उद्यान, तेलघानी और घरो के दान का इस लेख में वर्णन है । शक ९९१ सौम्य संवत्सर की उत्तरायणसक्राति के अवसर पर यह दान दिया गया था। रि०५० ए० १९६२-६३ शि० क्र० बी ८१५ ए० इ० ३७ पृ० ११३-११६ कोहिर (मेडक, आन्ध्र ) शक ९९१ = सन् १०७०, काड चालुक्य सम्राट भुवनैकमल्ल (सोमेश्वर २) के राज्यकाल मे पौष शक ९९१ सौम्य संवत्सर मे पडवळ चावुण्डमय्य द्वारा निर्मित बसदि के लिए दान का इस लेख में वर्णन है। मन्दिर निर्माता के गुरु शुभचन्द्र .. सिद्धान्तदेव थे। प्रादेशिक शासक के रूप में पंपपेर्मानडि का नाम उल्लिखित है। रि०६० ५० १६६१-६२ बी ५७
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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