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________________ जैन-विगल-संग्रह (क्र. ९८) मै मिला है (पुन्नाट संघ बाद में काष्ठासंघ के एक गच्छ के रूप में परिवर्तित हुआ तथा इस का नाम भी लाडबागड गच्छ हो गया, इस का विवरण हमारे 'भट्टारक सम्प्रदाय' मे दिया है, शिलालेखो में पुबाट परम्परा का उल्लेख इसी लेख मे सर्वप्रथम मिला है)। (उ) माथुरसंघ-नासून से प्राप्त सन् ११६० के मूर्तिलेख(क्र. १०१) में इस सघ के आचार्य चारुकीर्ति का उल्लेख मिलता है। बघेरा के सन् ११७५ के मतिलेख (क्र.० १०७) मे भी माथर सघ के श्रावक दूलाक का नाम उल्लिखित है ( इस सघ के बारहवी सदी के तीन उल्लेख पिछले संग्रह मे है, काष्ठासंघ के एक गच्छ के रूप मे इस के तीन लेखो का विबरण आगे देखिए )। (ऊ) काष्ठासंघ-ग्वालियर से प्राप्त सन् १४५३ के मतिलेख में इस सघ के माथर गच्छ के किसी पण्डित का नाम प्राप्त होता है (क्र. २०३ )। सोनागिरि के सन् १५४३ के मूर्तिलेख (क्र. २३९ ) मे काष्ठासंघ-पुष्करगण के भ० जससेन का उल्लेग्व है ( हम ने भट्टारक सम्प्रदाय मे बताया है कि पुष्करगण माथुरगच्छ का नामान्तर था, इसी पुस्तक मे सं० १६३९ का फतेहपुर का एक लेख दिया है (पृ० २२९) जिस मे इस परम्परा के भ. यश:सेन का उल्लेख है, ये यश सेन सम्भवत उपर्युक्त जससेन से अभिन्न थे)। इस सकलन का काष्ठासघ का अगला लेख सन् १६१३ का है, यह उखलद मे प्राप्त मूतिलेख है (क्र. २५६ ) तथा इस मे भ० जसकीर्ति का नाम अकित है। इन के गच्छ का नाम नहीं बताया है। सोनागिरि में प्राप्त सन् १६४४ के लेख में ( क्र० २६६ ) काष्ठासंघ-नन्दीतटगच्छ के म० केशवमेन, भ० विश्वकीर्ति तथा व मगलदास की चरणपादुकाएँ प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है ( हम ने भट्टारक सम्प्रदाय मे ( पृ० २९४ ) इन तीनो से सम्बद्ध अन्य विवरण दिया है)। (भा) मूलस-इस संघ के ५ गणो के लगभग ६० उल्लेख इस संकलन मे आये हैं। इन का विवरण इस प्रकार है।
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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