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________________ प्रस्तावना सम्बन्ध पिछले संग्रह में शूरस्थ गण के साथ पाया गया है, पिछले संग्रह मे सेनगण के पुस्तक गच्छ, पुष्कर या पोगिरि गच्छ एवं चन्द्रकवाट अन्वय के नाम मिलते है )। इस संकलन का द्राविड संघ का अन्तिम लेख (क्र. १११ ) सन् ११९४ का है, यह येत्तिनहट्टि में मिला है तथा इस मे इस सघ के अजितसेन आचार्य के स्वर्गवास का उल्लेख है । (भा) यापनीय संघ- इस संघ के वन्दियूर गण के महावीर पण्डित को मिले हुए दान का उल्लेख धर्मपुरी के ११वी सदी के लेख मे है (क्र. ७० ) । वरंगल के सन् ११३२ के लेख में ( क्र० ८६ ) इसी गण के गुणचन्द्र महामुनि के स्वर्गवाम का उल्लेख है । तेगली के १२वी सदी के लेख मे ( क्र० १२५) वर्णित वडियूर गण भी सम्भवत इसी वन्दियूर गण से अभिन्न है, इस के आचार्य नागवीर के एक शिष्य द्वारा मूर्तिस्थापना की गयी थी। ( पिछले सग्रह मे इस गण का कोई उल्लेख नही मिला था)। इस संघ के कण्डूर गण के आचार्य सकलेन्दु के शिष्य नागचन्द्र के शिष्य ने मूर्तिस्थापना की थी ऐसा लोकापुर के १२वी सदी के लेख ( क्र० ११७ ) से ज्ञात होता है (पिछले सग्रह मे इस गण के चार लेख सन् ९८० से तेरहवी सदी तक के है, यापनीय संघ के अन्य छह गणों के नाम पिछले संग्रह मे मिले है-कुमिलि या कुमुदि, पुन्नागवृक्षमूल, कारेय, कनकोपलसंभूतवृक्षमूल, श्रीमूलमूल तथा कोटिमडुव )। (इ) वागट संघ-इस के आचार्य सुरसेन का उल्लेख कटोरिया के सन् ९९५ के एक मूर्ति लेख (क्र. २१ ) में मिलता है। इसी सघ के धर्मसेन आचार्य का उल्लेख सन् १००४ के अजमेर सग्रहालय के एक मूर्तिलेख ( क्र. ३. ) में मिलता है (पिछले संग्रह में इस संघ का नाम नहीं मिला था, काष्ठासत्र के चार गच्छो मे एक का नाम वागड है किन्तु इस के भी कोई लेख प्राप्त नहीं हैं । )। (ई) पुझाट गुरुकुल-इस परम्परा के आचार्य अमृतचन्द्र के शिष्य विजयकोति का नाम सुलतानपुर के सन् ११५४ के आसपास के एक मूर्तिलेख
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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