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________________ हलहरवि मादिके लेख ७६ हलहरवि ( बेल्लारी, मैसूर) शक ४५४ = सन् ९३२, काड [ यह लेख शक ८५४ पार्थिव संवत्सर ( यह वर्षनाम ग़लत है ) का है। इसमे राजा नित्यवर्षके राज्यकालमे कन्नरदेवको रानी चन्दियब्बे द्वारा नन्दवरमे एक जैन बसदिका निर्माण तथा उसके लिए कुछ करोंका उत्पन्न पद्मनन्दि आचार्यको अर्पित किये जानेका उल्लेख है।। [रि० सा० ए० १९१५-१६ क्र० ५४० पृ० ५२ ] ८० कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) शक ८६२ = सन् ९४०, कन्नड [ यह लेख जिनशासनको प्रशंसासे शुरू होता है। तिथि शक ८६२, विकारि संवत्सर ऐसी दी है । अन्य विवरण प्राप्त नहीं।] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १९६ पृ० ३७ ] बिजापुर ( उदयपुरके समीप, राजस्थान ) संवत् ९५६ = सन् ९४० तथा संवत् १०५३ = सन् ९९७ ...." सस्कृत-नागरी १ ..."जवस्तवः । परिशामतु ना'परा(थंख्या)पना जिनाः ॥ ते वः पातु(जिना)विनामसम(ये यत्पा)दपमोन्मुखप्रेखासंख्यमयूख(शे)खरनखश्रेणीषु बिम्बोदयात् । प्रायैकादशभिर्गुणं दशशती शक्रस्य शुभद्दशां कस्य स्याद् गुणकारको न यदि वा स्वच्छात्मनां संगमः ॥२
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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