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________________ ३८ जैनशिलालेख-संग्रह [५८६ टाववियुमोरडिगलुक्कु शोराग अमैत्त पो७ ण ऐन्नरेन्दु काणम् ॥ [ यह लेख पाण्ड्य राजा वरगुण २ के राज्यवर्ष ८, शक ७९२ का है । इस समय गुणवीरके शिष्य शान्तिवीरने तिरुवयिर स्थित पार्श्वनाथ मूर्ति तथा यक्षीमूर्तिका जीर्णोद्धार किया था। इसके लिए उन्हे ५०२ काणम् ( सुवर्णमुद्रा)दान मिला था।] _[ए० इं० ३२ पृ० ३३७ ] ५६ धर्मपुरी ( सालेम, मद्रास ) शक ८०० = सन् ८७८, कन्नड किले में मारियम्मन देवालयके आगे पड़े हुए स्तम्मपर [ इस लेखमे पल्लव महेन्द्र नोलम्ब-द्वारा किसी जैन मन्दिरके लिए दान दिये जानेका निर्देश है। इस लेखका समय शक ८००, विलम्बि संवत्सर था।] __ [इ० म० सालेम ८१] कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) कन्नड, शक ८११%= सन् ८९० [ इस लेखकी तिथि कार्तिक पूर्णिमा, शक ८११, शोभन संवत्सर ऐसी है। इस समय दण्डनायक अम्मरसने कुपण तीर्थकी यात्रा की तथा महासामन्त कदम्बवंशीय अलियमरस-द्वारा निर्मित बसदिके लिए कुछ दान दिया था।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १५९ पृ० ४१ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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