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________________ -५८] राणिवेण्णूर आदिके लेख राणिवेण्णूर ( धारवाड, मैसूर ) शक ७८१ = सन ८६०, काड [ यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट् अमोघवर्ष (प्रथम ) के समयका है। नागुल पोल्लब्बे द्वारा स्थापित नागुलबसदिके लिए शक ७८१ मे कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे निर्देश है । यह दान सिहवूरगणके नागनन्द्याचार्यको दिया गया था।] [रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २०९ ] बेंटूर ( मैसूर) शक ७८५= सन् ८६४, काड [यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष १ के समय शक ७८५, तारण संवत्सरमें लिखा गया था। चिकण्ण नामक अधिकारीको कुछ भूमि दिये जानेका इसमें उल्लेख है। व्रतोंका पालन और सन्यसन इनका भी उल्लेख हुआ है । अतः यह समाधिमरणका स्मारक प्रतीत होता है। ] ( मूल कन्नडमें मुद्रित ) [सा० इ० इ० ११ पृ० ६ ] ऐवरमले ( मदुरा, मद्रास ) शक ७९२ = सन् ८७०, तमिल १ शकर याण्डएलु-नूरुत्तोपyरिण्ड २ पोन्दणवरगुण' याण्ड एटु गुणवीरक्कु३ रवडिगल माणाक्क(र)कालत्त शान्तिवीरक४ कुरवर तिरुवयिरै पोरिश्च (पार्श्व)प(म)टाररैयुमिय५ क्कि अब्बैगलैयुं पुदुक्कि इरण्डुक्कुमुद्
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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