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________________ मुनुगाड भादिक लेख मुनुगोडु (गुण्टूर, आन्ध्र) तेलुगु, ८वी सदी [ यह लेख पूर्वीय चालुक्य राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्धनके राज्यवर्ष ३७ का है। इस समय महामण्डलेश्वर गोंकय्यने मुनुगोडुके जिनालयके लिए कुछ भूमि दान दी थी। यहीके एक अन्य लेखमे गोंकके सेवक बोयुग-द्वारा इस जिनालयके जीर्णोद्धारका उल्लेख है जिसका निर्माण अग्गोति-द्वारा मुनिसुव्रतके तीर्थमे किया गया था। ] [रि० सा० ए० १९२९-३० क्र० १७-१८ पृ० ६ ] तिरुगोकर्णम् ( मद्रास ) तमिल, ८वीं सदी [ यह लेख शडैयापारै नामक पहाड़ीपर एक जिनमूर्तिके पास है । पाण्ड्य राजा कोरिण्मैकोण्डान् सुन्दरपाण्ड्यदेवके २४वें वर्षको एक राजाज्ञाका इसमे उल्लेख है। तदनुसार तेंकविणाडु के निवासियोंसे कहा गया था कि कल्लारुप्पल्लिके पेरुनकिलि चोलप्पेरुम्पल्लि आलवारके पूजादिके लिए स्थानीय पल्लि ( जिनमन्दिर ) के व्यवस्थापको द्वारा अर्पित जमीनोंको करमुक्त किया गया।] [इ० पु० ० ५३० पृ० ८५ ] ५१-५३ ब्रिटिश म्यूजियम ( लन्दन ) ८वीं-९वीं सदी, संस्कृत-नागरी १ अनन्तवीर्य २ सुलोचना ३ प्रति [ ये नाम तीन मूर्तियोंके पादपोठोपर खुदे है। ये मूर्तियां यक्ष तथा
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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