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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१६३ गणतो कोहियतो..."सत्यसेनस्य'.."धरवृधिस्य नि.... [वर्ष ८४ मे वर्षा ऋतुके तीसरे महीनेके २५वें दिन दमित्रकी पुत्री तथा ओखरिककी पत्नी दता ( दत्ता) ने यह मूर्ति स्थापित की। कोट्टिय गणके "सत्यसेन""धरवृद्धि । ] [ यदि लेखका वर्ष शककालका हो तो वह सन् १६२ होगा। [ए. इं० १९ पृ०६७ ] मथुरा प्राकृत-ब्राह्मो, पहली-२ री सदो ( खण्डित जैनमूर्विके पादपीठपर) (शा) खातो वाच (कस्य ) आर्य ऋ (षि) दासस्य निर्वर्तना" रकस्य मट्टिदामस्य" [""शाखाके वाचक आर्य ऋषिदासने यह बनवायी ।""रक भट्टिदामकी.] [रि० आ० स० १९११-१२ पृ० १७ ] १७-१८ मथुरा प्राकृत-ब्राह्मी, २री सदी [ यह लेख २री सदीकी लिपिमे है । अरहतके प्रणामसे इसका प्रारम्भ होता है तथा लायकके पुत्रका इसमें उल्लेख है। एक अन्य पादपीठपर इसी समयकी लिपिमें वर्धमानको प्रणाम किया है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५२८-२९ पृ० ७७ ] पहाड़पुर ताम्रपत्र ( जि. राजशाही, बंगाल ) गुप्त वर्ष १५९ = सन् १७९ संस्कृत अगला माग
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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