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________________ ३६८ जैन शिलालेख संग्रह [ ५७७ कोदि द्वारा ज़मीन गिरवी रखकर २१०० वीररायफण क़र्ज़ प्राप्त करनेका उल्लेख है । इसके ब्याजके रूपमे २८ मुडे चावल देना स्वीकार किया था । इसका उपयोग गेरुसोप्पेकी ललितादेवी द्वारा स्थापित बसदिमें पूजाके लिए होना था । तीसरा भाग मेष १, रविवार, नन्दन संवत्सरके दिनका है । इसमें तीन बन्धुओं द्वारा पार्श्वनाथबस्तिसे कुछ क़र्ज़ लेनेका तथा उसपर कुछ निश्चित रकम ब्याज देनेका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए९ ] ५७७ मूडबिदुरे (मैसूर) कलड [ इस ताम्रपत्र-लेखमे चारुकीति पण्डितदेव द्वारा निर्मित चण्डोग्र पार्श्वनाथबसदि के लिए कर्नरबलिकं बर्मनन्द तथा उनके बन्धु कुंगिय दान दिये जानेका निर्देश है । लेखको तिथि संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए७ ] बमसेट्टि द्वारा ७० गद्या वृषभ १५, रविवार, दुर्मुखि ५७८ निट्टूर ( मैसूर ) कराड १ चित्रभानु २ संवत्सर ४ द शुद्ध ७ गलु स्वर्गस्त = राद निविधि ५ यु सोम ३ द फाल्गुण ६ वार बोम्मण्ण [ इस निषिधिलेखमे फाल्गुन शु० ८ चित्रभानु संवत्सर के दिन बोम्मणके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मं० १९३० पू० २५७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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