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________________ -५६९ ] कोगलि मादिके लेख ३६५ कोगलि (बेल्लारी, मैसूर) कमड जैन मन्दिरमें एक मूर्तिके पादपीठपर [चैत्र शु० १४, रविवार, परिधावि संवत्सरमें अनन्तवीर्यदेवके शिष्य ओबेयमसेट्टि-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका इस लेख में निर्देश है। ] ( इ० म० बेल्लारी १९०) ५६८ कोलक्कुडि ( मदुरा, मद्रास) तमिल [ गुहामे जैन मूतिके पादपीठपर । ____ गुणसेनदेवके शिष्य वर्धमानव पण्डितके शिष्य गुणसेनपेरियडिगल-द्वारा यह मूर्ति खुदवायी गयी ऐसा इस लेखमे निर्देश है। यहाँकी अन्य दो मूर्तियोंके लेखोंमें भी गुणसेनदेवका उल्लेख है।] [इ० म० मदुरा ३९] कुण्डघाट ( जि० मोंधोर, बिहार ) __ संस्कृत-गौडीय जैन मन्दिरमें महावीरमूर्तिक पादपीठपर [ इस लेखमें वीरेश्वरक-द्वारा इस मूर्तिके दिये जानेका निर्देश है।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ९]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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