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________________ जैनशिलालेख संग्रह [५५९ ८ वत्तरु तेकलनाड एलपत्तारु द-- [ इस लेखका ऊपरका और दाहिना भाग टूटा है। नन्दियडिगल आचार्यको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । ] [ए० रि० मै० १९२६ पृ० ८३ ] तोललु ( मैसूर) १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादा२ मांधलांछनं जीयात् लोक्यना३ थस्य शासनं जिनशासनं । स्वस्ति यमनि४ यमस्वाध्यायगुणसम्पन्नरप्प अभयच५ न्द्रदेवरु सर्गगामिगलाद परोक्ष६ यममागल् पद्मावतियक्क माडिसिद सास७ नं ॥ अरेवेसनागिरह बसदियं माडि८ सिदरु देवर मनेय परिसूत्रद गट्टुं कट्टि६ यिसिदरु मनेयं माडि नदुम्मरनुमं नट१० रु इनिसक्कं यिक्कि पूजिसिद गवाणवेप्प११ तु । इन्तप्पुदक्के साक्षि मुद्दगवुण्डनु मास१२ गवुण्डनु तम्मडिय"रु । बिटियणर्नु ने. १३ मण- ईस्तानकोडेयरु । [ इस लेखमें कहा है कि आचार्य अभयचन्द्रकी मृत्यु होमेपर उनको शिष्या पद्मावतियक्काने एक अधूरे जिनमन्दिरको पूर्ण किया। इस कार्यमें ७० गद्याण खर्च हुए। इस मन्दिरके व्यवस्थापक बिट्टियण तथा नेमण थे। मुद्दगवुण्ड तथा भासगवुण्ड इसके साक्षी थे।] [ए० रि० मै० १९२६ पृ० ४२]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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