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________________ -५३९] गेरसोप्पेके लेख २ श्लोकः ॥ भोजणश्रेष्टिपुत्रोसौ कल्पवेष्ठिपुंगवः (1) अकारयत् सुतो यस्य मावाम्बागर्भजोजनाः ॥ [ यह नेमिनाथ मूर्ति ओजणश्रेष्ठिके प्रपौत्र तथा कल्लपोष्ठि एवं माबाम्बाके पुत्र अजणश्रेष्ठिने देशीगण-घनशोकवलीके आचार्य ललितकोतिके शिष्य देवचन्द्रसूरिके उपदेशसे स्थापित की।] [ ए० रि० म० १९२८ पृ० ९५ ] ५३६ गेरसोप्पे ( मैसूर ) काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछन (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथ स्य शासनं जिनशासनं (1) २ श्रोजिनराजराजितपदाम्बुजरा जमराल नगिरिय राजशिरो३ मणि प्रचुरकीर्तिदिशावलयप्रकाशनुं तेजभुजप्रतापरिपुराजमुखां४ बुजं हस्तवीरनुं भूजनवन्ध होनृपनर्थिजनावन कल्पवृक्षy होन् ५ नमहीशनात्मजेयु मालियब्बरसिगे कामराजगं सन्नुतमूर्ति होन नृपनात्मसबान६ धव मंगराजनुं मन्मथरूप हरिहरनृपालकनातन पुत्र हैवणरसंगे मन:प्रियान्७ गनेयु सान्तलदेवि समाधिकाल दोलु भाकेय गुरुगलु लोकल्याति यनान्तिद् अनन्८ तवीर्यरु रतिसंकाशसोबगेनिसि सन्दिा कान्तेगे हैवणरस वल्लमनादं । स्मररूपं ९ सूद्रकंगी पुरदोलु कीर्तिवेत्त बोम्मणसेटिव वरवनिते बोम्मकंग
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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