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________________ जैनशिलालेख-संग्रह अन्वयके कुछ सज्जनोंने की थी। प्रतिष्ठा तिथि ज्येष्ठ शु० ३, सोमवार, संवत् १५९३ ऐसी दी है। ] [रि० इ० ए० १९५३-५४ ऋ० १६२ पृ० ३३ ] ४६६ हनुमंतगुडि ( रामनाड, मद्रास ) शक १९५५ = सन् १५३३, तमिल मलवनाथ जैन मन्दिरके आगे पड़ी हुई शिलाओंपर [इसमें शक १४५५ के लेखके खण्ड है । एकमे जिनेन्द्रमंगलम् अथवा कुरुवडिमिदिका निर्देश है जो मुत्तोरु कूरम् विभागमे था।] (इ० म. रामनाड २७९) ४७० नीलत्तनहल्लि ( मैसूर) सन् १५३४, कन्नड [ इस लेख में सन् १५३४ में मदवणसेट्टिके पुत्र पदुमणसेट्टि-द्वारा अनन्तनायचैत्यालयमे किसी व्रतके पालनका उल्लेख है।] [एरि० म० १९१५ १० ६८ ] ४७१ लक्ष्मेश्वर ( मैसूर) . शक १४(६१)=सन् १५३९, कन्नड [ इस लेखमें जैन और शवोके एक विवादके समझौतेका उल्लेख है। यह विवाद जिनमूतियों के सम्मानके सम्बन्धमे था । जैनोंकी ओरसे शंखबसतिके शंखणाचार्य तथा हेमणाचार्यने और शैत्रोंको ओरसे दक्षिणसोमेश्वर
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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