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________________ जैन शिलालेख-संग्रह [४५७ ४५७ गुरुवयनकेरे ( द० कनडा, मैसूर ) शक १४३१ % सन् १५१०, कन्नड [ यह लेख स्थानीय शान्तोश्वरबसदिके मण्डपमें है। इसमें माघ १० १०, सोमवार शक १४३१ को बेलतंगडीके कुछ लोगों-द्वारा कुछ भूमिके दानका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४८० पृ० ४५ ] ४५८ वरांग ( ६० कनडा, मैसूर) शक १४३७ = सन् १५१५, कन्नड [ यह लेख विजयनगरके कृष्णदेवमहारायके समय माघ शु० ५, शुक्रवार, शक १४३७ भावसंवत्सरका है। इसमें तुलुराज्यके शासक रत्नप्पोडेयका उल्लेख किया है। देवेन्द्रकीतिकी प्रार्थनापर इस बसदिके लिए देवराय-द्वारा पहले दी हुई भूमिके पुन. खेतीयोग्य बनानेका इसमे उल्लेख है। यह कार्य अक्कम्म हेग्गिडिति तथा उनके सहयोगियों-द्वारा सम्पन्न हुआ था ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ पृ० ४९ क्र० ५२८ ] ४५६ चामराजनगर (मैसूर) सन् १५१८, काड [ इस लेखमे अरिकुठारके महाप्रभु कामैय नायकके पुत्र वीरेय नायकद्वारा विजय ( पाव ) नाथ मन्दिरके लिए सन् १५१८ में कुछ दानका उल्लेख है। [ए० रि० मै० १९१२ पृ० ५१]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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