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________________ १२ जैनशिलालेख-संग्रह [१५० ४५०-४५१ आदवनी ( बेल्लारी, मैसूर ) १५वीं सदी, तेलुगु [ ये लेख पहाड़ीपर एक पाषाणपर खुदे हुए तीर्थकरमूतिके पास और चरणपादुकाओंके पास हैं। ये बहुत घिसे हुए हैं। मूतिके पास एक शकवर्षकी संख्या खुदी है तथा पादुकाओके पास किसी आचार्यका नाम है। दोनों अच्छी तरह पढ़ना सम्भव नहीं है । लिपि १५वीं सदीको है।] [रि० सा० ए० १९४१-४२ क्र० ७४-७५ पृ० १३७] ४५२-४५३ नरसिंहराजपुर ( मैसूर ) १५वीं सदी, कमाड [ यहाँके दो मूर्तिलेख १५वीं सदीके लिपिके है। इनपर देविसेट्टिके पुत्र दोडणसेट्टि तथा नेमिसेट्टिके पुत्र गुम्मणसेट्टिके नाम उत्कीर्ण है।] [ए० रि० में० १९१६ पृ० ८४ ] हनसोगे ( मैसूर) १५वीं सदी, कमर १ हनसोगेय हिरियबसदिय २ कोण्डिय कल्ल ओरसेय बोम्मि३ सेट्टियरु इक्किसिदा [ यह लेख स्थानीय आदीश्वरबसदिके सभामण्डपके छतके पाषाणपर खुदा है। यह पाषाण ( कोण्डियकल्लु) बोम्मिसेट्टि-द्वारा स्थापित किया गया था ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १५वीं सदीकी है। ] [ए० रि० म० १९३९ पृ० १९४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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