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________________ - ४१५] कोनकोण्डल नादिकेलेल આર-૪૩ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १४वीं सदी क " [ ये दो लेख १४वीं सदीकी लिपिमें रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ीपर पाषाणोंपर खुदे हैं । इनमें विपगिरिके श्रीविद्यानन्दस्वामी तथा बोलय नागका उल्लेख हुआ है । अक्षर कुछ अस्पष्ट हुए हैं । ] [ रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ४५२-५३ ] ४१४ उहरि ( मंसूर ) १४वीं सदी, कनड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यादवादा २ मोघलांछन । जोयात् त्रैलोक्यना ३. थस्य शासनं जिनशासनं ॥ स्वस्ति श्रीमतु २९३ ४ .....विजयकीर्तिमटारर [ यह लेख खण्डित है इसलिए विजयकीर्तिभटार इस नामके अतिरिक्त अन्य विवरण इससे प्राप्त नहीं होता । लिपि १४वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मै ० १९२९ पृ० १४२ ] ४१५ सक्करेपट्टण (मैसूर) संस्कृत-कन्नड, १४वीं सदी १ २ तस्मिन् सेनगणान्तरिक्षतरणिः श्रीवीरसेनो भुवि संसाराम्बुधितारणैकतरणिः श्रेयोवनीसारणी । तच्छिष्यः प्रचुर
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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