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________________ २७४ जैन शिलालेख संग्रह ३८१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ यह लेख चन्द्रनाथ मूर्तिके पादपीठपर खुदा है। इस मूर्तिकी - जिसे कच्चिनायकर कहा है - स्थापना मालपिरन्दान् मोगन् कच्चियरायरद्वारा की गयी ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [ रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१९ पृ० ६७ ] ३८२ कोट्टगेरे (मैसूर) १३वीं सदी, कड [ ३८१ [ इस लेखमें देसियगण इंगलेश्वर बलिके हेरंगु निवासी आचार्य हरिचन्द्रके शिष्य माघनन्दिन्द्वारा एक शान्तिनाथ मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मे० १९१९ पृ० ३३ ] ३८३ तिरुनिडंकोण्डे ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ यह लेख यहाँकी पहाड़ीपर चढ़नेके लिए बनी सीढ़ियोंके पास है । इन सीढ़ियोंका निर्माण गुणवीरदेवन् पण्डितदेवन्ने किया ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१६ पू० ६७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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