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________________ -३७.] रस्नापुरिभादिके लेख ३ लिय श्रीश्रुतकीर्तिदेवर गुगल कोंग नाड श्रीकरणद कावण्णगल मक्क५ लु नाकण्ण होनण्णंगलु माडिसिद श्री६ नेमिनाथस्वामिगल प्रतिमे मंग७ ल महा श्री श्री श्री [ इस लेखमें श्रीकरणद कावण्णके पुत्र नाकण्ण तथा होनण्ण-द्वारा, जो कोंगु प्रदेशके निवासी थे, नेमिनाथकी इस मूर्तिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है। ये दोनों मूलसंघ-देसियगण-पुस्तकगच्छकी इंगलेश्वरबलिके आचार्य श्रुतकीर्तिके शिष्य थे। लेखको लिपि १२वीं या १३वीं सदीकी प्रतीत होती है । (ए. रि० मै० १९४४ पृ० ४२) ३७० रत्नापुरि ( मैसूर) १२वीं-१३वीं सदी, कसद [ यह दो पंक्तियोंका लेख एक मूतिके पाद-पोठपर है जिसमें किसीभट्टारकदेव-द्वारा इस मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वीं या १३. वीं सदीकी प्रतीत होती है।] [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए० रि० मै० १९४४ पृ० ७० ] ३७१ बेलगोल ( मांडया, मैसूर ) १२वा-१३वीं सदी, कनाड [ इस छोटे-से मूर्ति-लेखमे द्रविल संघ-नन्दिसंघ-अरुंगल अन्वयके कुछ व्यक्तियों द्वारा इस पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है । लिपि १२वीं या १३वीं सदीकी प्रतीत होती है। [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए. रि• मै० १९४४ पृ० ५७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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