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________________ २५८ जैमशिलालेख संग्रह [ ३४० ३४०-३४१ हत्तिमत्तर ( धारवाड, मंसूर ) राज्यवर्ष ५ तथा १ = सन् १२६५ तथा १२६९, कनड [ ये दो लेख हैं । पहला लेख यादव राजा महादेवके राज्यवर्ष ५ में कार्तिक व० १३, बुधवार, क्रोधन संवत्सर के दिन सेवयर जक्कयकी पत्नी मादके समाधिमरणका स्मारक है । दूसरेमे महादेवके राज्यवर्ष ९ में हत्तियमत्तूरकी बसदिके आचार्यके समाधिमरणका उल्लेख है । (न) न्दिभट्टारकदेवका भी उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३२-३३ क्र० ई० ६८-६९ पृ० ९८ ] ३४२ इलेबीड (मैसूर) सन् १२.५, कड [ यह लेख होयसल राजा नरसिंह ३ के समय सन् १२६५ का है । इस वर्ष मे राजा द्वारा त्रिकूट रत्नत्रय शान्तिनाथ जिनालयके लिए माघनन्दि सैद्धान्तिको कल्लनगेरे ग्राम दान दिया गया था । माघनन्दिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है - मूलसंघ - नन्दिसंघ - बलात्कारगणके वर्धमानमुनिजो होयसल राजाओके गुरु थे, श्रीधर त्रैविद्य-पद्यनन्दित्रैविद्य वासुपूज्य सैद्धान्तिशुभचन्द्र भट्टारक- अभयनन्दिभट्टारक - अरुहणंदि सिद्धान्ति, देवचन्द्र, अष्टोपवासि कनकचन्द्र, नयकीर्ति, मासोपवासि रविचन्द्र, हरियनन्दि, श्रुतकीर्ति विद्य, वीरनन्दि सिद्धान्ति, गण्डविमुक्त, नेमिचन्द्रभट्टारक, गुणचन्द्र, जिनचन्द्र, वर्धमान, श्रीधर, वासुपूज्य, विद्यानन्द स्वामि, कटकोपाध्याय श्रुतकीर्ति, वादिविश्वासघातक मलेयालपाण्डयदेव, नेमिचन्द्र, मध्याह्नकल्पवृक्ष वासुपूज्य । श्रीषरदेव - वासुपूज्य - उदयेन्दु - कुमुदेन्दु - माघनन्दि । माघनन्दिके चार
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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