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________________ २०८ जैनशिलालेख-संग्रह [२५३ २७३ पाटशोवरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) शक १९०७ = सन् ११८५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा बीर सोमेश्वरके समय शक ११०७ विश्वावसु मंवत्सरका है। इसमे राजाके सामन्त भोगदेव चोल महाराजाका तथा वोरणन्दिसिद्धान्तचक्रवति और उनके शिष्य पद्मप्रभमलधारिदेवका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० २८ पृ० ७२ ] २७४ लक्कुण्डि ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ४ = सन् ११८५, कन्नड [ यह लेख त्रिभुवनमल्ल वीरसोमेश्वरके राज्यवर्ष ४, विश्वावसु संवत्सरमै पुष्य शु० २ बुधवारका है। इसमे कुछ सेट्टियों द्वारा अष्टविधार्चनके लिए नोम्पियबसदिको कुछ दान देनेका उल्लेख है। कुछ शिल्पकारों द्वारा शान्तिनाथदेवको दिये हुए दानोका भी उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० ५५ पृ. ५ ] २७५-२७६ कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख कदम्ब राजा वीर कावदेवरसके राज्यकालमें चैत्र व० १, मंगलवार, श्रीमुख संवत्सरके दिन लिखा गया था। चन्द्रकीति भट्टारकके शिष्य तथा वर्धमानसेट्टिके पुत्र सातिपेद्दके समाधिमरणका इसमे उल्लेख है। यहीके एक अन्य लेखमे एक सेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [रि० ० रा० १९४७-४८ क्र० २३८-२४० पृ० २७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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