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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२६९७ सामान्योयं धर्मसेतुर्नृपाणां काले-काले पालनीमो भवद्भिः सर्वानेतान् माविनः पार्थिवन्द्रान् भूयो भूयो याचते रामचंद्रः ।। स्वस्ति श्रीमन्महामंडलेश्वरं त्रिभुवनमल वीरगंग बल्लालदेवरु दोरसमुद्रदलु सुखसंकथाविनोददि राज्यं गेयुत्त विरलु तत्पादपभोपजीवि महाप्रधान सर्वाधिकारि हेगडे बल्लय्य शककालं सासिरद् तोमत्तेदनेय विजय संवत्सरद कार्तिक शुद्ध पंचमि सोमवारदंदु कालबोवनहल्लिसहितवागि बोगवदियलुल समस्तसुंकवं श्रीकरणजिनालयद श्रीपाश्वदेवर भष्टविधार्चनेगेंदु श्रीमदकलंकदेव(सिंहा-) ८ हासनस्थितरप्प श्रीपनप्रमस्वामिगलगे धारापूर्वकं माडि कोहरु ( इस लेखमे होयसल राजा बल्लालके महाप्रधान हेग्गडे बल्लय्य-द्वारा भोगवदिके पार्श्वजिनालयके लिए अकलंकदेवकी परम्पराके पद्मप्रभ स्वामीको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिये जानेका निर्देश है। यह दान कार्तिक शु० ५, शक १०९५, विजयसंवत्सर,के दिन दिया गया था। हेग्गडे बल्लय्य महाप्रधान माचिराजका माव ( ससुर या चाचा था ) [ए० रि० मै० १९४० पृ० १५० ] २६६ सोगि ( जि० बेल्लारी, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड (वीरप्पके घरके श्रागे एक शिलाखण्डपर) [ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धन वीरबल्लाल-द्वारा कातिक कृ० ५, गुरुवारको किसी जैन मंस्थाको भूमिदान दिये जानेका निर्देश है। [ इ० म० बेल्लारी २३७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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