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________________ -२४३] शृंगेरी आदिक लेख २४० भंगेरी ( मैसूर ) शक १०७१ = सन् ११५०, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलां२ छनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ३ स्वस्ति श्री(म)तु सकवरुषंगलु १०७१ ने प्रमोदू४ तसंवत्सरद चयिसावमासद "शुद्ध सप्तमि ५ स दन्दु श्रीकाणूरगण मूलसंघ.. ६ पुस्तकगच्छद.."हरिय ७ मंगल [ यह लेख पाश्वनाथदसदिके मुखमण्डपके एक पाषाणपर है । वैशाख शु० ७, शक १०७१, प्रमोदूत संवत्सर इस तिथिका तथा मूलसंध-काणूरगण-पुस्तकगच्छका इसमे उल्लेख है। लेख अस्पष्ट होनेसे इसका उद्देश आदि विवरण ज्ञात नहीं हो सकता।] [ ए० रि० मै० १९३४ पृ० ११३ ] अरसीवीडि ( बिजापूर, मैसूर ) चालुक्य विक्रम नर्ष ७६ = सन् ११५१, कन्नड [ इस लेखमे चालुक्य राजा त्रैलाक्यमल्लदेवके सामन्त वीरचाउण्डरस तथा उसको पत्नी देमलदेवी-द्वारा पौष व०-२, बुधवार, चालुक्य विक्रम वर्ष ७(६)के दिन मूलसंघ-देशियगणके आचार्य नयकोति सिद्धान्तदेवके शिष्य नेमिचन्द्र पण्डितदेवको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई ३३ पृ० ४३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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