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________________ -२३० ] तिरक्कोल आदिके लेख २२५-२२७ तिरक्कोल ( उ० अर्काट, मद्रास ) ११वीं - १२वीं सदी, तमिल [ इस लेख में तण्डपुरम्की पल्लि ( जैनवसति ) के लिए एरणन्दि उपनाम नरतोंग पल्लवरैयन् द्वारा कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । यह ग्राम पोन्नूरनाडुमें सम्मिलित था । यहींके एक अन्य लेखमें शेम्बियन् शेम्बोत्तिलाडणार् द्वारा कनकवोर शित्तडिगलको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । यह चोल राजा परकेसरिवर्मन्‌के १२वे वर्षका लेख है । तीसरा लेख स्थानीय वर्धमानमन्दिरके दो स्तम्भोंपर है । ये स्तम्भ अरुमोलिदेवपुरम्के इडैयारन् आट्कोण्डान् मावोरन्-द्वारा स्थापित हुए थे । ] [रि० स० ए० १९१५-१६ क्र० २७६-२८० पृ०९१ ] २२८-२३० बस्तिहल्लि ( मैसूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १६७ [ यहाँ तीन लेख हैं । एक जिनमूर्ति के पादपीठपर मूलसंघ - देसियगण के - कुक्कुटासन- मलधारिदेव के शिष्य शुभचन्द्र सिद्धान्तिदेव के शिष्य दण्डनायक गंगपय्यका नामोल्लेख है। एक दूसरे मूर्तिके पादपीठपर मूलसंघ- देसिगणके दिनकर जिनालय मे हेग्गडे मल्लिमय्य-द्वारा मूर्तिस्थापनाका उल्लेख है । इस मन्दिरके द्वारके लेखमे इस मन्दिरको स्थापनाका वर्ष सन् ११३८ दिया है । ] २३१ नाङलाई (जि. देसूरी, राजस्थान ) संवत् ११९५ = सन् ११३९, संस्कृत - नागरी १ ओं नमः सर्वज्ञाय ॥ संवत ११ [ ए० रि० मै० १९११ पृ० ४४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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