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________________ ७६६ जैन शिलालेख संग्रह २२२ कोल्हापुर (महाराष्ट्र ) १२वीं सदी पुर्वार्ध कन्नड महालक्ष्मी मन्दिर में छतके खम्मोंपर [ २२२ [ यह लेख शिलाहार राजा गण्डरादित्यके समयका है । इनके सामन्त निम्बने एक चैत्यालय बनवाया था । नाकिराजको कन्या कर्णादेवीका भो उल्लेख है जो एक रानी थी । कोण्डकुन्दान्वयके माघनन्दि आचार्यका भी उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३५१ ] २२३ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) सन् ११३७, तमिल [ यह लेख कुलोत्तुंग चोलदेव ( द्वितीय ) के राज्यवर्ष ४ मे लिखा गया था । आलप्पिरन्दान् मोगन् उपनाम कुलोत्तु गशोलकाडवरायन्- द्वारा कच्चिनायनार ( चन्द्रप्रभ) की पूजा के लिये जननाथमंगलम् गाँवके उत्पन्नसे ४२० कलम् ( नापका प्रकार ) चांवल अर्पण किये जानेका इसमे उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३११ पृ० ६६ ] २२४ गणपवरम् (गुण्टूर, आन्ध्र ) ११वीं - १२वीं सदी, तेलुगु [ यह लेख श्रावण शु० ३ का है - शकवर्षके अंक लुप्त हुए है । कुलोत्तुंग राजेन्द्र के पुण्यवृद्धि के लिए अक्कसाल कामोजुद्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है । अन्तमे चन्द्रप्रभजिनालयका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९१५-१६ पृ० ४३ क्र० ४५८ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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