SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -२०७] उगरगोल आदिके लेख १४९ कोम्मणार्यद्वारा कुमारतैलपदेवकी पुण्यवृद्धिके लिए कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान मूलसंघके पद्मनन्दिदेवके शिष्यको अर्पित किया गया था । [रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र० ३४४ पृ० ६६ ] २०५ उगरगोल ( बेलगांव, मैसूर ) ११वीं-१२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख जिनशासनकी प्रशंसासे प्रारम्भ होता है। चालुक्यसम्राट त्रिभुवनमल्लदेवके किसी महाप्रधानका इसमे उल्लेख है। लेख खण्डित है ।। [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ८२ पृ० २४७] २०६ सिरसंगि ( जि. बेलगाँव, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड [चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लके समयका यह लेख है। तिथि पौष शु० १३, रविवार, उत्तरायण संक्रान्ति ऐसी है। ऋषिशृंगीके छह गावुण्डोंका इसमे उल्लेख है। बाचि गावुण्ड तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा किसी बसदिको जमीन आदिके दानका उल्लेख है । गण्डवि ( मुक्त ) सिद्धान्तदेद, अत्तिमब्बे, देवरस, तथा कलिदेवसेट्टिका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ७६ पृ० २४६ ] हूलि ( जि० बेलगाँव, मैसूर ) १२वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-कन्नड १ ( श्रीमत्परमगंभी)रस्यादवादामोघलांछनं। जीयात् त्रैलोक्य
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy