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________________ ११५ जैनशिलालेख-संग्रह [१७1 हनगुन्द ( बिजापूर, मैसूर ) काह, ११वीं सदी उत्तरार्ध [ इस लेखमे चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव ( विक्रमादित्य षष्ठ ) का उल्लेख है । तिथि शक ९. दी है। मूलसंघ-देशीय गण-पुस्तक गच्छकुन्दकुन्दान्वयके ( इन्द्र )णंदिके शिष्य बाहुबलि आचार्य द्वारा एक जिनमन्दिर बनवानेका तथा उस मन्दिरके लिए कुछ भूमिदान प्राप्त करनेका इसमें उल्लेख है।] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० १४१ ] १७२ तोललु ( मैसूर ) कन्नड, ११वीं सदी उत्तरार्ध १ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल्ल तलका २ कमाडि बिट्टन्दु ३ नडसुविरि ४-७ (ये पंक्तियाँ विस गयी हैं ) ८ स्वस्तिश्रीमतु तोलल बसदिगेनाडु ९." १० हिरिय मुद्द गनुण्ड"गनुण्ड बिलग ११ वुण्ड वूलुवनड"वुण्ड वूरवर ओक्कल १२ ""उत्तराण संक्रान्तियन्दु नविलू१३ र नेमिचन्द्रपण्डितर्गे धारापूर्वकं माडि कोहरु आ१४ नविलूरोलगे आवनागि-यदुकुववनु"हण १५ वेन्दु हिडिसिदव""हन्नोन्दु । १६ तलेयं नरकदलिलिवर गंगेयतडियलि कविले.
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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