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________________ - १७० ] तुम्बदेवनहल्लिका लेख ३२ संगलिसि तीविदन्त्तेरेयंगन जसमखिलभुवनांतरदोल । नटनिट लेक्षणा ३३ ग्नि नृगणंगणं उज्वलकीर्तिपाण्डुरभू कुरुलु जडेयागे जगक्के ३४ देवनादरिबिरुदत्रिनेत्रने मगी कोण्डकुन्दान्त्रयो३५ पन्ने विख्याते देखिगे गणे रविचन्द्राख्यसै यमनियम३६ स्वाध्यायपराणेयरप्प मान्यवेगन्तिय तावरेयकेरेय केलग३७ ण आडणमण्णं धारापूर्वकं कोहर् चालुक्यविक्रमकालद २१ने धातुसंवत्सरद कार्तिक न ३८ न्दीश्वरदष्टमियन्दु मंगलमहाश्री स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्ष ३९ सहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि || १२५ [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके निर्माण के समयका है । यह बसदि एरेयंगदेवकी रानी असबब्बरसि द्वारा बनवायी गयी थी । लेखमे एरेयंगका वंशवर्णन इस प्रकार दिया है--कदम्ब कुलमे रणकि राजा -- तत्पुत्र हृदुवतत्पुत्र बूत—तत्पुत्र चिष्ण - तत्पुत्र एरेयंग - तत्पुत्र चिण्ण २ - तत्पुत्र एरेयंग २ | इस मन्दिरके लिए कोण्डकुन्दान्वय- देसिग गणके रविचन्द्र से (द्धान्तदेव) के उपदेश से माचवेगन्ति द्वारा कुछ भूमि दान दी गयी थी । लेखकी तिथि कार्तिकी नन्दीश्वर - अष्टमी ( शुक्ल ८ ), चालुक्य विक्रम वर्ष २१, धातु संवत्सर इस प्रकार दी है इसी मन्दिरकी एक प्रतिमाके पादपीठपर ११वीं सदीको लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है बस (दिगे) वासवुरदे बिदृग २ भत्त ५० अर्थात् — इस बसदिके लिए बासवुर ग्रामके उत्पन्नसे २ गाण ( मुद्राएँ ) और ५० भत्त (चावलके परिमाण) दान दिये गये हैं । ] [ ए०रि० मै० १९३९५० १४५ - १५२]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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