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________________ - १६७ ] अरसीबीडिका लेख तथा नयसेनके शिष्य नरेन्द्रसेन ( द्वितीय ) को पौष कृष्ण ६, शुक्रबार, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर कुछ दान दिया । इसके बाद लेखमें दिनकर, उसके पुत्र राजिमय्य तथा दूडम, दूडमकी पत्नी एचिकब्बे तथा पुत्री हम्मिकब्बे, हम्मिकब्बेका पति अरसय्य तथा पुत्र वैद्य कन्नप एवं कनपके पुत्र इन्दप, ईश्वर, राजि, कलिदेव, आदिनाथ, शान्ति, एवं पार्श्वका वर्णन है । संभवतः इन लोगोंकी प्रार्थनापर दोणने उक्त दान दिया था । ] [ ए० इ० १६ पृ० ५८ ] १६६ अरसीबीडि ( बिजापुर, मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष १० = सन् १०८५, कन्नड १२१ [ इस लेखकी तिथि आषाढ शु० १, बुधवार, कोधन संवत्सर, चालुक्य वर्ष ० ऐसी है । इस समय सुकवेगडे मन्तर बर्मणने विक्रमपुर ( वर्तमान अरसीबीडि ) स्थित गोणद बेडंगि जिनालय के ऋषि-अर्जिकाओंको आहारदान देनेके लिए कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया था । सिन्द वंशके सिन्दरसके पुत्र बर्मदेवरसके अधीन प्रान्तीय शासक के रूपमें सुंकवेर्गडे नियुक्त था । ] [ मूल लेख कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० २३९ ] १६७ मरुत्तवक्कुडि ( तंजोर, मद्रास ) तमिल, सन् १०८६ [ यह लेख ऐरावतेश्वर मन्दिरके आगे मण्डपकी दक्षिणी दीवालपर है । त्रिभुवनचक्रवति कुलोत्तुरंग चोलदेव, जिसने मदुरा जीतकर पाण्ड्य
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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