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________________ 1 जैन शिलालेख संग्रह ११ ( २ ) ८ है । इसका तीसरा अंक कुछ अस्पष्ट है । ] ११२ [ $40 [रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १५३ ] १५७ लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक ९९६ - सन् १०७४, कमंड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लके समय चैत्र शु० ८, रविवार आनन्द संवत्सर, शक ९९६के दिन लिखा गया था । मणल कुलके महासामन्त जयकेसियरसने पुरिगेरेके पेर्माडिबसदिके दर्शन किये तथा मूलसंघ - बलात्कारगणके गण्डविमुक्त भट्टारकके शिष्य त्रिभुवनचन्द्र पण्डितके निवेदनपर उसे पुरके रूपमे परिवर्तित किया ऐसा इसमें उल्लेख है ।] [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० २९ पृ० १६३] १५८ हनगुन्द (मैसूर) शक ९९६ सन् २००४, कराड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव सोमेश्वर (२) के समय पौष शु० ५, रविवार, शक ९९६, आनन्द संवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था । इसमें सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके अरुणंदिभट्टारकके शिष्य आर्य पण्डितको पोन्नुगुन्दकी अरसर बसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान श्रीकरण देवणय्य नायक, पेगंडे नाकिमय्य, पेगंडे रेवणय्य, करण आय्चप्पय्य, तथा पसायित काटिमय्यने सर्व प्रधानों द्वारा की गयी जिन पूजाके अवसरपर दिया था । उस समय बेल्वल तथा पुलिगेरे प्रदेशोंपर महामण्डलेश्वर संग्रामगरुड लक्ष्मरस का शासन चल रहा था ।] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ १० १११ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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