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________________ -1१५] भषिणगेरिका लेख यह शिलालेख अन्तिम रूपसे सन् ११५० के करीब लिखा गया होगा।] [ ए० ई० १५ पृ० ३३७ ] अण्णिगेरि ( मैसूर ) शक ९९३-६४ %= सन् १०७१-७२, कबाड [ यह लेख अक्षरशः गावरवाड लेखके पहले दो भागों जैसा ही हैसिर्फ चार श्लोक इसमें अधिक हैं। यथा- (१) मंगलाचरणमे-जगत्त्रितयनाथाय नमो जन्मप्रमाथिने। नयप्रमाणवाग्रश्मिध्वस्तध्वान्ताय शान्तये ॥ (२) महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसके वर्णनमें--मले यंतो (ट्ट) लतुलिदं मलेयोल मामलेव मलेपरं मग्गिसिदं मलेयेलं कोपिर्दुमनलेदं जलनिधियोलें प्रतापियो लक्ष्म ॥ (३-४) गुणकीति पण्डितकी शिष्य परम्पराके वर्णनमेंकृतकृत्यरभयनन्दिमल तनूजर सकलचन्द्रसिद्धान्तिकरप्रतिमर् सर्वांगमलान्वितगण्डविमुक्तदेवरा मुनिशिष्यर् || एनिसिद गण्डविमुक्तर तनूभवर् चरणकरणपदविद्यापावन मन्त्रवाददो त्रिभुवनचन्द्रमुनीन्द्ररल्ते बुधजनवन्धर् ।। इससे अभयनन्दि - सकलचन्द्र - गण्डविमुक्त - त्रिभुवनचन्द्र इस परम्परा का पता चलता है। इस लेखमें गावरवाड लेखके अन्तिम दो भाग नहीं हैं । अतः प्रतीत होता है कि यह शक ९९४ में ही खुदवाया गया होगा।] [ए० इ० १५ पृ० ३४७ ] १५६ हैदराबाद म्युजियम ( आन्ध्र ) सं० १५ (२) ८ = सन् १०७२, संस्कृत-नागरी [ इस मूर्तिलेखमें वीतरागकी उपासिका रावदेवी-द्वारा देवांगना तथा लोणीपतिको मूर्तियोंकी स्थापना किये जानेका उल्लेख है । समय संवत्
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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