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________________ -१०.] मसुलिपट्टम तानपत्र ६३ मलयकुलोद्भव कहा है। स्थानीय पहाडीपर उत्कीर्ण मूर्तियोंकी पूजाके लिए उसने कुछ दान दिया था। कुरण्डिके गुणवीर भटारका भी इसमे उल्लेख है। उत्कीर्ण मूर्तियां महावीर, पार्श्वनाथ, गोम्मटदेव तथा पद्मावती की है। यहीके एक अन्य लेखमे १०वों सदीकी लिपिमे कहा है कि इन मूर्तियों ( तेवारम् ) का निर्माण वेलि कोंगरैयर पुत्तडिगलने किया था।] [रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र०२५१-५२ १०३४ ] मसुलिपट्टम ताम्रपत्र ( आन्ध्र) १०वीं सदी, संस्कृत-तेलुगु , ज्याकृष्टरत्नखचितायतशागचापो यस्सेन्द्र कार्मुकविनीलपयोद वृन्दम् । निमर्मयन्निव विमा२ ति स कृष्णकान्तिर्विष्णुश्शिवन्दिशतु वोवतत्रिलोकः॥ (.) स्वस्ति श्रीमतां सकलभुवनसंस्तूयमानमा३ नव्यसगोत्राणां हारीतिपुत्राणां कौशिकीवरप्रसादलन्धराज्याना मातृगणपरिपालितानां स्वामि४ महासेनपादानुध्यातानां भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवरवराह लांछनेक्ष५ णवीकृतारातिमण्डलानामश्वमेधावभृथस्नानपवित्रीकृतवपुषां चालुक्यानां कु६ लमलंकरिष्णोस्सत्याश्रयवल्लभेन्द्रस्य भ्राता कुजविष्णुवर्धननृप तिरष्टादशवर्षाणि७ वेंगीदेशमपालयत् । तदात्मजो जयसिंहस्त्रयस्त्रिंशतम् । तनुजे न्द्रराजनन्दनो विष्णुवर्धनो न८ व । तत्सूनुमगियुवराजः पंचविंशतिम् । तत्पुत्री जयसिंहसयो दश । तदवर
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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